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२४. प्रभु ! असंवत अणगार, चाल विण उपयोग सूं ।
तिष्ठे वेसै धार, सयन करै उपयोग विण ।। २५. वस्त्र पात्र तिम जाण, कंबल पायपुच्छण वली।
विण उपयोगे माण, ग्रहण करतां मूकतां ।। २६. तास प्रभु ! स्यं थाय, इरियावहि क्रिया हवै।
तथा हवै संपराय? प्रश्न गोयम इम पूछिया ।। २७. तब भाखै जिनराय, इरियावहि तेहनै नहीं।
हवै क्रिया संपराय, गौतम कहै किण अर्थ प्रभु ? २८. जिन कहै जसु संवेद, क्रोध मान माया वली।
लोभ तणुंज विच्छेद, इरियावहि क्रिया तसु ।। २९. क्रोध मान नै माय, वलि तसु लोभ विच्छेद नहीं।
क्रिया तास संपराय, उदय कषाय तणों जिहां ।। ३०. जिम सूत्रे आख्यात, तिम चालै चूक नहीं।
इरियावहि बंधात, ए वीतराग आश्री कह्यो। ३१. जिम सूत्रे आख्यात, तिण रीते चालै नहीं।
उत्सूत्र करि जात, संपरायिकी तेहने ।। ३२. असंवृत मुनि एह, चालै उत्सूत्रेज ते।
तिणसं तास वदेह, हुवै क्रिया संपरायिकी ।। ३३. इण वचने कहिवाय, अकषाई छै तेहनें ।
इरियावहि बंधाय, संपराय बंधै नहीं। ३४. द्वितीय सूयगडांग मांहि, बीजा अध्येन में कह्यो।
क्रिया तेरमी ताहि, इरियावहिया तेहने ।। ३५. तीन काल नां ताम, अरिहंत भगवंत छै तिके।
सेवी सेवै आम, वली अनागत सेवस्य ।। ३६. इरियावहि वर्तमान, सीझ सीज्झया सीझस्यै ।
द्वितीय अंग ए वान, ते माटै ए पुन्य छ । ३७. प्रथम समय बांधत, द्वितीय समय वेदै तिका ।
तृतीय समय निजरंत, ते इरियावहिया कही ।। ३८. पुन्य कर्म आदान, तिणसं इरियावहि भणी।
सावज्जति कहि जान, पिण सावज्ज नहिं सर्वथा ।। ३९. गमन करै तिण न्याय, तेऊ वाऊ त्रस कही।
पिण नहि छै त्रसकाय, तिम इरियावहि सावज्ज नथी। ४०. असन्नी नारक देव, विभंग न पायो ज्यां लगे। पिण नहिं असन्नी भेव,
तिम इरियावहि सावज्ज नथी। ४१. स्नेह प्रमुख अठ जेह, सूक्षम दशवकालके। पिण नहि सूक्षम तेह,
तिम इरियावहि सावज्ज नथी। ४२. ग्यारम बारम ठाण, वीतराग छद्मस्थ ए।
तेरम केवलनाण, इरियावहिया तसू बंधै ।। ४३. तसु सावज्ज किम होय, सावज्ज सूं तो पाप बंध ।
वीतराग रै जोय, पाप कर्म बंधे नहीं ।।
३४. सूयगडो २।२।२
३६. सूयगडो २।२।८०
३७. सूयगडो २।२।१६
४१. सिह पुप्फसुहुमं च, पाणुत्तिगं तहेव य । पणगं बीय हरियं च, अंडसुहुमं च अट्ठमं ।।
(दसवे० ८।१५)
१७६ भगवती जोड़
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