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________________ १५. अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स आसादणाए वट्टति, १६. केवलीणं आसादणाए बट्टति १७. केवलिपण्णत्तस्स धम्मस्स आसादणाए वट्टति, १८. तं सुठु णं तुमं मदुया ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, १९. साहु णं तुमं मदुया ! जाव (सं. पा.) एवं वयासी। (श० १८।१४३) २०,२१. तए णं मद्दुए समणोवासए समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुठे २२. समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, १५. धर्म अरिहंत परूपियो जेह, होजी तेहनी आसातना वर्तेह ।। १६. केवली सर्वज्ञानी गुणवंत, होजी त्यांरी आसातना वर्तत ।। १७. केवलज्ञानी परूपियो धर्म, होजी त्यांरी करै आसातना कर्म ॥ १८. ते भणी भलो मद्दुक ! तुम्ह भाख्यो, होजी ओ तो अन्यतीर्थ्यां प्रति दाख्यो। १६. शोभन तुम्है मद्दुका ! जाणी, ___ होजी आ तो जाव वदी वर वाणी ॥ २०. इह विधि वीर को छते सारं, होजी ओ तो मद्दुक हरख्यो तिवारं ।। २१. परम संतोष हियै अति पायो, होजी मौने त्रिभुवन-तिलक सरायो॥ २२. श्रमण भगवंत महावीर वंदंतो, होजी करै नमस्कार गुणवंतो॥ २३. नहीं अति निकट प्रभू के पासं, - होजी ओ तो जाव करै पर्युपासं ।। २४. ऐश्वर्यवंत श्रमण महावीरं, होजी प्रभु मद्दुक प्रति गुणहीरं ।। २५. ते महापरखद नै धर्म भाख्यो, होजी इहां जाव शब्द में आख्यो। २६. वीर तणी वर सांभल वानं, होजी आ तो परखद पहुंती स्थानं ।। २७. श्रमणोपासक मदुक तिवारं, होजी ओ तो श्रमण भगवंत नां सारं ॥ २८. जाव हिय धर जिन वच घोषं, होजी ओ तो पायो हरष संतोषं ।। २९. प्रश्न पूछे वर प्रश्न पूछी नैं, होजी ओ तो अर्थ हिय धारी नैं ।। ३०. वीर प्रत वंदै शिर नाम, होजी ओ तो जाव गयो निज धामं ।। २३. णच्चासण्णे जाव (सं० पा०) पज्जुवासइ । (श०१८१४४) २४. तए णं समणे भगवं महावीरे मदुयस्स समणोवासगस्स २५,२६. तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ जाव परिसा पडिगया। (श०१८।१४५) २७. तए णं मदुए समणोवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स २८. जाव (सं. पा.) निसम्म हट्ठतुढे २९. पसिणाई पुच्छति, पुच्छित्ता अट्ठाई परियादियति, परियादिइत्ता. ३०. समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता जाव (सं. पा.) पडिगए। (श०१८।१४६) ३१. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी३२. पभू णं भंते ! मदुए समणोवासए गीतक छंद ३१. हे भदंत ! इम कही गोतम, श्रमण भगवंत प्रति गुणी। वंदना स्तुति नमस्कृत कर, एम भाखै महामुणी ।। ३२. *समर्थ छ प्रभु ! मद्दुक जाचो, . होजी ओ तो श्रमणोपासक साचो।। ३३. देवानुप्रिया पास स्वयमेवा, होजी ओ तो जाव प्रव्रज्या लेवा? *लय : भवानी तू देवी भयभंजनी ए ३३. देवाणुप्पियाणं पव्वइत्तए? अंतियं (जाव (सं० पा०) श० १८, उ०७, ढा० ३८० १६९ Jain Education Intemational national For Private & Persanal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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