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________________ ४३. जेष्ठ पुत्र में पूछने जी एहवी सेवका ऊपरे जी, ४४. सिविका ऊपर बड़ करी जी, परिजन जेष्ठ पुत्रे करी जी, ४५. सर्व ऋद्धि करि शोभता जी, जाव वार्जित्र सुसादि । विलंब रहित कात्तिक सेठ जी आया घर अहलादि ॥ ४६. कार्तिक सेठ तिण अवसरे जी, विस्तीर्ण चिउं आहार | जिम गंगदत्त नो आखियो जी, कहिवो तिम विस्तार ॥ ४७. जाव मित्र न्यातो सहु जी, यावत परिजन साथ । जेष्ठ पुत्र पिण संग छै जी, चारित्र लेवा जात ॥ ४८. एक सहस्र आठ ओपता जी वाणोत्तर तिवार कात्तिक के चालता जी, सर्व ऋद्धि करि सार ॥ हजार । अपार ॥ पुरुष उपाई चढिया हरष मित्र अरु व्याति निजग्ग चालता थका सुमग्ग || J ४६. जाव वाजित्र रखे करी जी हबणापुर मध्य होय । जिम गंगदत्त तिम आवियो जी, श्री जिन पासे सोय || ५०. शतक अठारम देश दूसरे जी, त्रिण सय बोहितरमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी जी, ३. घर जलते जिम गृहपति निज सुख क्षेम कल्याण हे , 'जय - जश' हरष विशाल || ढाल : ३७३ हा , १. प्रभु ! जान अलिप्त आलेवढ़ो, जलै लोक जग मांय । प्रलिप्त प्रभु! पलेवडो जले लोक अधिकाय ॥ २. आलिप्त प्रलिप्त लोक प्रभु! यावत जास्ये लार निज आतम निस्तारियां परलोके सुख सार ।। Jain Education International सार वस्तु कावंत | इह भव अनु आवंत || ४. जन्म मरण री लाय थी, आतम काढिस बार । पर भव हित सुख क्षेम शिव, तसु फल आस्यै लार ।। ५. ते माटै वांछू प्रभु ! एक सहल ने यह अट्ठ । बाणोत्तर साथै प्रवर, ग्रहिवो चरण सुवट्ट || भेव । ६. प्रव्रज्या स्वयमेव ही, मुंड बाय जाव धर्म कहिवा प्रतै हूं बांछू स्वयमेव ॥ 1 ४३. आपुहिता पुरिवाहिणीओ बीयाओ हति ४४. दुहिता मिस नाइ-जाब (सं०पा०) परिजन जेपुतेहि य समणुगम्ममाणमग्गा ४५. सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि निग्घोसनादियरवेणं अकालपरिहीणं चैव कत्तियस्स सेट्टिस्स अंतियं पाउब्भवति । ( ० १८२४०) ४६. ए पं से कतिए सेड्डी विपुलं असणं पाणं खाहमं साइमं वेति जहा गंगदतो (भग० १६७१) ४७. जान परिजण जे ४८. नेगमट्टसहस्सेण या समगम्यमाणम सम्बिड्डीए ४९. जावदुदुहग्ोिसना दियरवेणं हरियणापुरं नगरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छर, जहा गंगदत्तो । (भाग० १६.७१) १. जाव आलित्ते णं भंते ! लोए, पलित्ते णं भंते ! पोए For Private & Personal Use Only २. आलिस पतिते भलए जान आगामिताए भविस्सति । ५, ६. तं इच्छामि णं भंते ! नेगमट्टसहस्सेण सद्धि सयमेव पव्वावियं जाव धम्ममाइक्खियं । (श० १६४९) श०१८, ०२, ढा० ३७२,३७३ १३३ www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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