________________
(११) कतत्व का स्मरण
प्रस्तुत ग्रन्थ भगवती जोड़ का पांचवां खंड है । इसके सम्पादन का अवसर मुझे मिला, यह मेरा सौभाग्य है । ग्रंथ-सम्पादन की पूरी यात्रा परमाराध्य गणाधिपति गुरुदेव के चरणों में बैठकर की गई है। इस कार्य में गुरुदेव का सान्निध्य उपलब्ध नहीं होता तो स्थान-स्थान पर आने वाले अवरोधों से यह यात्रा कभी भी स्थगित हो सकती थी। समय-समय पर आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के मार्गदर्शन से काम करने में सुगमता हुई । इस यात्रा में मेरी अभिन्न सहयात्री रही है साध्वी जिनप्रभाजी । प्रारंभ से ही इस कार्य में साथ रहने के कारण उनका इससे आन्तरिक लगाव भी हो गया है । जोड़ में यत्र-तत्र निर्दिष्ट आगमों के प्रमाण खोजने में मुनि हीरालालजी का सहज योग उपलब्ध है । जोड़ के समानान्तर मूल पाठ और वृत्ति का समायोजन हमने किया, पर उसकी पाण्डुलिपि साध्वी स्वर्णरेखा ने तैयार की। प्रफ निरीक्षण के कार्य में साध्वी जिनप्रभाजी को साध्वी विभाश्रीजी, जयविभाजी आदि अनेक साध्वियों का सहयोग रहा है । जैन विश्व भारती प्रेस के कार्यकर्ता भी इस ग्रन्थ की दुरूह कम्पोजिंग को गहरी निष्ठा और दक्षता के साथ सम्पादित कर रहे हैं । कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि हम सब तो निमित्त हैं, इस कार्य में प्राप्त होने वाली ऊर्जा के मूल स्रोत परमाराध्य गणाधिपति गुरुदेव हैं। आपका मंगल आशीर्वाद ही आलोक बनकर हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहा है।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
२२ अक्टूबर १९९४
नई दिल्ली
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org