SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतनो आद, तिहां पंडित आदि संवाद | पिण अर्थ की नहि भेद || विशेषण क्रिया मुनि आधार | इम को टीका है मांय ॥ ३९. ह्या पूर्व संयत तिणरो शब्द भी भेद संवेद, ४०. तो पिग संयतपणां नो विचार, पंडितपणादि बोधि पेक्षाय ४१. रानीं पूछा कियां, जिन भाखं बाल कहाय हो लाल । पंडित नहीं है नेरइया, बलि बालपंडित पण नांय हो लाल । ४२. एवं जाव चद्रिया कांद्र, तिरिοपंचेंद्रिय ताय हो वाल । प्रश्न तास पूछयां थकां तव भाखे थी जिनराय हो लाल । ४३. पंचेंद्रिय तिरखजोगिया कोई बात कहीजे सोय हो लाल । पंडित त कहिये नहीं, तिके वालपंडित पिण होय ही लाल ।। ४४. मनुष्य जीव जिम जाणव, कोइ वाणव्यंतर पहिछाण हो लाल । 1 ज्योतिषी देव वैमानिया कांड, नारक नीं पर जाण हो लाल || ४५. शत सतरम देश दूजा तणो, तीनसौ त्रेसठमी ढाल हो जाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' मंगलमाल हो लाल ।। ढाल : ३६४ Jain Education International दूहा १. अन्ययूथिक अधिकार थी, अन्ययुचिक कहै तेहनो, जीव जीवात्मा एकत्व पद वलि जे मिथ्या बात । गोयम प्रश्न वदात रंगोयम गणधार, प्रभु ने पूछ्या प्रश्न उदार ॥ ( ध्रुपदं) २. अन्यतीर्थिक प्रभु ! इम कहै वान, कां जाव परूपै जान । इम निश्चै करि कहिवाय, कांइ प्राणातिपात रे मांय || ३. मृषावाद विषे पिण ताहि, जाव मिथ्यादर्शणसल्य मांहि । व ते अन्य जीव पहिछाण, कोइ अन्य जीवात्मा जाण ॥ ४. प्राणातिपात वेरमण सोय, जाव परिग्रह- वेरमण जोय । क्रोध विवेक ते क्रोध ने टाले, आतम नैं उजवाले || ५. जाव मिथ्यादर्शणसल्य विवेक, टाले पाप अठार विशेख | तेहविषे वर्तमान सूजन्य अन्य जीव जीवात्मा अन्य ६. च्यार बुद्धि उत्पत्तिया आदि, जाव परिणामिया संवादि । तेह विषे वर्तमान कथन्न, अन्य जीव जीवात्मा अन्न । *लय : घूमघूमालो घाघरो +लय : दसकंधर राजा रावण ८६ भगवती जोड़ ३९. प्रागुक्तानां संपादीनामिहोक्तानां च पण्डि तादीना यद्यपि शब्दत एवं भेदो नार्थतः ( वृ० प० ७२३ ) ४०. तथाऽपि संयतत्वादिव्यपदेशः क्रियाव्यपेक्षः पण्डितःत्यादिव्यपदेशेष इति । ( वृ० प० ७२३ ) ४१. नेरइयाणं पुच्छा । गोयमा ! नेरइया बाला, नो पंडिया, नो बालपंडिया । ४२. एवं जाव चउरिदिया । पंचिदियतिरिखजोणियाणं पुच्छा ४३. गोयमा ! पंचिदियतिरिक्खजोणिया बाला, पंडिया, वालपंडिया वि । ( ० १०.२८ ) १. अन्ययूथिक प्रक्रमादेवेदमाह ४४. मणुस्सा जहा जीवा । वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया जया नेरइया । ( ० १७२९) नो ( वृ० प० ७२३) २. अण्णउत्थिया णं भंते ! परूवेंति एवं खलु पाणातिवाए, ३. मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले वट्टमाणस्स अ जीवे, अण्णे जीवाया । ४. पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे For Private & Personal Use Only एवमाइक्खति जाव ५. जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाया । ६. उप्पत्तियाए जाव (सं० पा० ) पारिणामियाए माणस्स अण्णे जीवे, अण्णे जीवाया । www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy