SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३. संयतासंयती छे तिको, रह्यो धर्म-अधर्म रे मांह्यो हो लाल । विचरै धर्म अधर्म अंगीकरी, कांइ तिण अर्थे कहिवायो हो लाल ।। सोरठा १४. अथ हिव धर्म उदार, सर्व विरति स्थित्यादि जे। दंडक विषे विचार, करें निरूपण प्रितं ॥ १५. जीव बहु भगवंत जी ! रह्या धर्म विरति विषे तेह हो लाल । के अधर्म व्रत में रह्या, धर्माधर्म विषेज रहेह हो लाल ? १६. जिन कहे जीव धर्म विषे रह्या, तेह संवती पवित्त हो वाल । अधर्म विषे रह्या अवती, श्रावक धर्माधर्मी स्थित्त हो लाल ।। १७. नेरश्या नीं पूछा कियां, जिन कई धर्मो न रहाय हो । रह्या अधर्म विषे तिके, धर्माधर्म विषे रह्या नांय हो लाल ।। १८. एवं जान चउरिद्रिया तिरि-पंचेंद्रिया पूछाय हो लाल । जिन कहै तिरि-पंचेंद्रिया, तिके धर्म विषे रह्या नांय हो लाल ।। १९. अधर्म विषे रह्या अछे तिके, अव्रती चिडं गुणठाण हो लाल । धर्माधर्म विषे रह्या, ते तो देश विरतियंत जाण हो लाल ।। २०. मनुष्य जीव जिम हिं विधे व्यंतर जोतिथि वैमानीक हो लाल । कहिवा नारक नीं परं, एकांत अव्रती कथीक हो । सोरठा २१. कह्या ए संजती आद, तेह पंडितादिक ि बाद देखाड़े अन्ययुथिक मत ॥ बाल पंडित पद २२. अन्यतीधिक प्रभु! दम कहे कांइ, जाव परूपे एम हो लाल । इम निश्वं करि भ्रमण ते कांद, पंडित कहिये तेम हो लाल ।। २३. श्रमणोपासक ने कहा। कांइ, वालपंडित अवधार हो लाल । ए बिहु पक्ष कहै अछे कांइ, अन्यतीर्थी तिह वार हो लाल ।। सोरठा २४. श्रमण पंडित पंडित बाल सुदरख प्रथम पक्ष ए आखियो । श्रावक्क, ए दूजो पक्ष जाणवूं || २५. ए बेहं न्याय, जिन भावं तिमहिज का द्वितीय पक्ष प्रति ताय, दूषवता ते इम कहै | पक्ष बा० - 'समणा पंडिया समणोवासगा बालपंडिया' ए बे पक्ष तो तीर्थंकर ने मानवा जोग्य हीज है । हिवं 'समणोवासगा बालपंडिया' - ए दूजा पक्ष प्रत दूषवा ते अन्यतीर्थी इम कहे * लय : घूमघूमालो घाघरो ८४ भगवती जोड़ Jain Education International १३. संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते, धम्माधम्मं उवसंपज्जिताणं विहरति । से तेणट्ठेणं जाव धम्माधम्मे ठिते । ( ० १७।२१) १४. अथ धर्म्मस्थितत्वादिकं दण्डके निरूपयन्नाह( वृ० प० ७२३ ) १५. जीवा णं भंते ! कि धम्मे ठिता ? अधम्मे ठिता ? धम्माधम्मे ठिता ? १६. गोयमा ! जीवा धम्मे विठिता, धमाधम्मे विठिता । १७. नेरइयाणं पुच्छा 1 गोयमा ! नेरइया नो धम्मे ठिता, अधम्मे ठिता, नो धम्माधम्मे ठिता । १८. एवं जाव चउरिदियाणं । पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोमा ! पंचिदियतिरिक्खजोणिया नो धम्मे ठिता, १९. अधम्मे ठिता, धम्माधम्मे वि ठिता । अधम्मे विठिता, ( श० १७/२२ ) २०. मणुस्सा जहा जीवा । वाणमंतर जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया । (श० १७/२४) २१. संयतादयः (० १०।२३) प्रागुपदर्शितास्ते च पण्डितादयो व्यपदिश्यन्ते, अत्र चार्थेऽन्ययूथिकमतमुपदर्शयन्नाह( वृ० प० ७२३ ) For Private & Personal Use Only २२. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खति जाब परूवेंति - एवं खलु समणा पंडिया, २३. समगोवासवा बालयि २४, २५. 'समणा पंडिया समणोवासया बालपंडिय त्ति एतत् किल पक्षद्वयं जिनाभिमतमेवानुवादपरतयोक्त्वा द्वितीयपक्षं दूषयन्तस्ते इदं प्रज्ञापयन्ति(व० प० ७२३ ) www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy