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________________ २६. मनहर आसन शयन छै, थंभ भंड अरु मात्रज उपगरण मनोहर जाणी, हो लाल । पोतं पण चंद्र इंद्र ते, सोम्य अरुद्र आकारे अथवा नीरोग पिछाणी हो लाल । ३०. कांति सोभाग सहीत छे, तिणसूं ए बहु जन ने कांद वल्लभ अतिही लागे, हो लाल । दर्शण प्रेमकारी अछे, स्वां माटे ? तसु उत्तर 9 कांइ सुंदर रूपज सागै, हो लाल ॥ ३१. ति अर्थ करि चंद्र ने श्री सोभा करि सहितज वर्त्तते शशि का छै, हो लाल । नाम तास गुणनिष्पन कांदे कर छे हो लाल । ३२. किण अर्थे भगवंत जी ! द्वितीय नाम सूर्य नो कांति सहित निज सुरसुरी कांड आदित्य तास कहीजे, हो लाल । जिन भाखे गुण गोयमा ! समय आवलिकादिक नीं कोइ सूर्य आदि नहीजे, हो लाल ।। सोरठा ३३. दिवस निशादिक जाण, निर्विभाग पहिखाण, ३४. तिण प्रकार कर तेह दिवस रात्रि नों जेह, ३५. * यावत अवसर्पिणी तणी, वलि उत्सप्पिणी केरी कां आदि प्रथम रवि लहिये, हो लाल । तिण अर्थ करी जाव ही सूर तणो आदित्यज कांद अपर नाम इम कहिये हो लाल ।। ३६. हे प्रभु ! इंद्र जोतिषी तणो, ज्योतिषी नों ए राजा कां चंद्र महासुखदाई हो लाल । अमहिषी तसु केतली ? दशम शत पंचमुदेते दाख्यूंतिम इहां कहाई, हो लाल ॥ काल तणां जे भेद नों । तेह अंश ए समय छै ॥ सूर्य उदय अवघे करी । प्रारंभ कर्त्ता समय छै ॥ ३७. यावत ते निश्चै करी, सभा सुधर्मा मांही मिथुन न सेवे महाली हो लाल । तिहां पाठ कहिवो इतला लगे, सूरज ने पिण तिमहिज कां कहिवो सर्व संभाली, हो लाल ।। ३८. देश बारम छट्टा तणो, ढाल दोयी ऊपर कां सम ए आखी हो लाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' सरस संपदा कां निर्मल रूड़ी रात्री हो लाल ।। 7 *लय : पातक छानो नहीं रहे ७४ भगवती जोड़ Jain Education International २९. कंताई आसण-सयण-खंभ- भंडमत्तोवगरणाई अप्पणा वि य णं चंदे जोइसिंदे जोइसराया सोमे ३०. ते सुभए सिणे सुरु ३१. सेते गोपमा ! एवं दुबइ पंदे ससी, चंदे ससी । (श. १२।१२५) ३२. से! एवं बरे आदिले रे आदिच्च ? गोयमा ! सूरादिया णं समया इ वा आवलिया इ वा ३५. जाव ओसप्पिणी इ वा उस्सप्पिणी इ वा । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-सूरे आदिच्चे, सूरे आदिच्चे । ( . १२।१२६) ३६. चंदस्स णं भंते! जोइसिदस्स जोइसरण्णो कति अगमहिसीओ पप्णताओ ? जहा दसमाए (भ० १०९० ) ३७. जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं । सूरस्स वि तहेव । (न. १२/१२७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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