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________________ १५४. बारमा शतक विषे कह्या, चउथ उद्देशे एभाव जो चउथो उद्देशो बाकी रह्यो, आगल छै वलि न्याव जो ।! १५५. दोयसौ नैं चउपनमीं, आखो ए ढाल उदार जो । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जम' हरष अपार जो ।! इहा १. संख्यात परमाणु एकठा, मियां थकां स्यं होय ? जिन कहै संख प्रदेशियो बंध हुवै छै सोय ॥ ढाल : २५५ २. तेह संध भेदीजतां वे भागे विष होय । यावत दश भागे करी, तेह हुवै छ सोय ।। ३. वले संख्याते भाग पिण, कीजे तास प्रकार । तास भेद हिव जूजुआ, दाखे जिन जगतार ॥ संख्यात प्रदेशिया नां भांगा ४६० दो भाग स्यूं ११ विकल्प - *जय जय ज्ञान जितेंद्र नौ ॥ [घ्रपद ] परमाणु एक पास हो, गोतम ! बंध हवं तास हो, गोतम ! द्विप्रदेशिक बंध हो हो, गोतम ! प्रदेशियो बंध हवं सोय हो, गोतम ! ६. अथवा एक पासे तमु, तीन प्रदेशियो बंध हो गोतम ! ४. बिहं भागे करतां चको, इक पास संख्यात प्रवेशियो ५. अथवा एक पासे तसु इक पास संख्यात इक पास संख्यात प्रदेशियो संघ हुवे सुगंध हो, गोतम ! ७. अथवा एक पासे तसु, च्यार प्रदेशियो खंध हो, गोतम ! इक पास संस्थात प्रदेशियो बंध प्रबंध हो, गोतम ! गोतम ! ८. अथवा एक पासे तसू पंच प्रदेशिक होय हो, गोतम ! इक पास संख्यात प्रदेशियो खंध हुवै छै सोय हो, ९. अथवा एक पासे तसु छ प्रदेशिक बंध हो हो, गोतम ! इक पास संख्यात प्रदेशियो बंध एवं सोय हो, गोतम ! १०. अथवा एक पासे तसु, सप्त प्रदेशिक जास हो, गोतम ! इक पास संख्यात प्रदेशियो खंध हुवै छै तास हो, गोतम ! ११. अथवा एक पासे तसु, अष्ट प्रदेशिक एम हो, गोतम ! इक पास संख्यात प्रदेशियो खंध हुवै छै तेम हो, गोतम ! १२. अथवा एक पासे तमु, नव प्रदेशिक बंध म्हाल हो, गोतम ! इक पास संस्पात प्रदेशियो बंध हुये ते संभाल हो, गोतम ! *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी ३२ भगवती जोड़ Jain Education International १. संखेज्जा णं भंते! परमाणुपीगला एगयओ साहति, साहण्णित्ता किं भवइ ? गोयमा ! संखेज्जपएसिए बंधे भवइ । २. से भिज्जमाणे दुहा वि जाव दसहा वि । ३. संखेज्जहा वि कज्जइ ४. हा कज्जमागे एगपो परमाणुयोग्य ए संखेज्ज एसिए बंधे भवइ । ५. अवाए खंधे भवइ । ६. एगयओ तिपएसिए बंधे, एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे भवइ । ७- १३. एवं जाव अहवा एगयओ दस पएसिए बंधे, एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे भवइ । For Private & Personal Use Only दुपसिए बंधे एक संवेगपएसिए J www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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