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________________ ते थलचर मांहि थी नीकली, पछै जासी जलचर मांहि लाल रे । मछ कछ सुसमारादिक, त्यांरा नाम अनेक छै ताहि लाल रे ॥१०॥ त्यांमें भव करसी अनेक लाखां गमे, एकीकी नाम जात मझार लाल रे । तिहां पिण संघले सस्त्र सं मारीजसी, ते पिण पहचर जिम विसतार लाल रे ॥११॥ तिहांथी नीकल जासी चोइंदी मझे, तिहां पिण लाखां गमे भव जाण लाल रे । इमहिज तेइंद्री नै मझे, बेइंद्री पिण एम पिछाण लाल रे ।।१२।। त्यां मांहि थी नीकल्यो थको, जासी वनसपती रै मांहि लाल रे। पांचं थावर में बेहिला बीचसी, ते संक्षेप कई छ ताहि लाल रे ॥१३॥ वनसपती नै बाउकाय ना, तेऊ अप नै प्रथवीकाय लाल रे। त्यांरा पिण भेद अनेक छ, अनुक्रमे उपजसी त्यां मांय लाल रे ।।१४।। लाखां गमे करसी भव तहमें, एकीकी काय रा भेद मांहि लाल रे । त्यां पिण घात सस्त्र सू पामसी, बलू-बलू करतो मरसी ताहि लाल रे ।।१५।। मार खातो-खातो एकिन्द्री मझे, मिनष तणां भव मांय लाल रे। ते किणकिण ठिकाणे ऊपजे बले, सुणजे गोतम ! चित ल्याय लाल रे ॥१६।। तिण काले नैं तिण समे, नगरी राजग्रही ताम। भमतो-भमतो जीव गोसाला तणों, आय उपजसी तिण ठाम ॥१॥ ढाल : ३७ [माधव इम बोल रे] नगरी राजग्रही नै बाहिरे रे, अचोखी वेस्या रै ठिकाण । अछेप मेला कुल मझे रे, वेस्यापणे उपजसी आण रे। करमां गति जोयजो ॥१॥आं० तिहां अनेक माठा किरतब करै रे, त्यां पिण सस्त्र सूं पाम घात । बल-बलं करती मरसी तिहां रे, बले करती अनेक विलापात रे ॥२॥ काल करेसी तिहां थकी रे, चोखी वेस्या होसी दूजी वार। ते राजग्रही नगरी मझे रे, माठा किरतब री करणहार रे ॥३॥ तिहां पिण सस्त्र संघात पामसी रे, बल-बलं करती तिण ठाम। . विलविलाट करती थकी रे, तिहां पिण दुखणी थकी मरण पाम रे ॥४॥ पछै इण हीज जंबूद्वीप में रे, भरतखेतर सूठाम । विभारगिरी नैं मूले तिहां रे, होसी विभल सनीवेस गाम रे ।।५।। तिहां ब्राह्मण नां कुल ने मझ रे, पुत्रीपणे उपजसी आण। मात-पिता ने व्हाली होसी रे, ते रूप में अतंत बखाण रे॥६।। ४३२ भगवती-जोड़ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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