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बले मेठी गाम नगर मझे जी पणां लोक करे गुणग्राम । इण जीतब जनम सुधारियो जी, तिण साध प्रतिलाभिया ताम ॥ १५॥ पांच दरव परगट हुया जी, ओ पिण लोक इचरज देख । तिण सूं ठाम ठाम बातां करें जी, विवरा सुध विशेख ॥१६॥
वहा
आयो
हिवे सीहो तिहां पी नीकल्यो, भगवंत पास पाक सूप्यो भगवंत ने मन मोहे अतंत हुलास || १ || पाक लेई वीर हाथ में प्रक्षेप्यो सरीर मकार । ततकाल मिटी दाह वीर नीं, सुखसाता हुई तिणवार ॥२॥ रोग रहित हुआ वीर सर्वथा, वल बधियो सरीर मझार । तेज प्राकम बधियो अति घणों, ते कहितां न आवै पार || ३ || वाणी वागरवा समर्थ हवा, चोबीसमा जिणराय । जब कुणकुण जीव हरपत हुआ, ते सुणजो चित स्थाय ॥४॥
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ढाल : ३०
[ सोरठ देश मझार द्वारका नगरी सार आज हो वसुदेव राजा राज करें तिहां जी ]
बीर लियो वीजोरापाक, तिण सूं हुय गया चाक
आज हो सीहो मुनीसर ल्यायो बेहरने जी ॥ १ ॥ साध साधवियां सुविसेष त्वां पाम्यो हरष संतोष
आज हो मन रा मनोरथ फलिया तेहनां जी || २ || वले श्रावक श्रावका जाण, ते पिण चतुर सुजाण ।
आज हो हरष संतोष त्यां पिण पानियो जी ॥ ३॥ ए हरख्या तीरथ च्यार त्यां पाम्यो आनंद अपार ।
आज हो विकसत हुआ कमल नां फूल ज्यूं जी ॥ ४ ॥ बले देवी देवता ताम, ते हरण्या ठामो ठाम आज हो वीर सरीर निरोगो सांभले जी ॥ ५ ॥ वले देव मिनख सुर लोग त्यांरा विकस्या तीन जोग
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आज हो रलियां पुराणी त्यांरा मन तणी जी ।।६।। वले हरषी परखदा बार, ते सुणवान हुआ त्यार ।
आज हो वाणी चलू हुई जाणी वीर नीं जी ॥७॥ हिवे गणधर गोतम साम, पूछे भगवंत ने आम । आज हो वंदना करे ने वीर जिणंद नैं जी ॥ ८ ॥
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गोसाला री चौपई, ढा० २९, ३० ४२३
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