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________________ ते सुखम कलेवर थापन, कहूं बादर रो विसतार । ते सौ-सौ वरस गयां थकां, एक कण रेत का? बार हो ।।११।। एकेको रेत रो कण काढतां, सारी गंगा खाली थाय । जब एक सर परमाण हुवै, कह्यो छै म्हारा सिधंत मांय हो ।।१२।। एहवा तीन लाख सरां तणों, एक महाकल्प हुवै ताय । एहवा चोरासी लाख महाकल्प नों, एक महामाणस थाय हो ।।१३।। अनंता संजुक्त तिहां करै, जीव चवी-चवो तिण ठाम । संजुक्त ऊपर लै माणसे, देवपणे ऊपजै ताम हो ॥१४॥ महामाणस नां समुदाय नी, हं संख्या कहूं छू ग्यान । ते सर्व नदी हवै एतली जी, सुणजे सुरत दे कान हो ॥१५।। दोय हजार कोड़ाकोड़ नै, वले नवस कोडाकोड़ जाण। वले चोसठ कोड़ाकोड़ ऊपरे, पिचितर लाख कोड़ बखाण हो ॥१६॥ अड़तालीस हजार कोड़ ऊपरे, सर्व एतली नंदी जाण । एक महामाणस हुवै तेहनी, ए संख्या कही परमाण हो ।।१७।। ते देव तणां भोग भोगवे, पूरो करै आऊखो ताय । पहिला सनी गर्भ में मझे, जीव ऊपजै आय हो ॥१८॥ ते जीव तिहां थी नीकले, मझले माणस में आय। संजुक्तपणे जे जीवड़ो, उपजै देव गति में जाय हो ।।१६।। तिहां देव तणां भोग भोगवे, बीजा सनी गर्भ में उपजै ताय । तिहां थी नीकल ते जीवड़ो, हेठला माणस में आय हो ॥२०॥ संजुक्तपणे वले जीवड़ो, उपजे देवता में जाय। ते देव तणां भोग भोगवे, तीजो सनी गर्भ हुवै आय हो ॥२१।। छठा सनी गर्भ तांई जीवड़ो, इणहीज विध उपजे आय । तिहां थी नीकल हवै देवता, पांचमां देवलोक में जाय हो ॥२२॥ पांच मोटा आवास तेह में, म्है भोग भोगविया ताय । दस सागर आउषो पूरो करी, हुवो सातमों सनी गर्भ आय हो ।।२३।। हं सवा नव मासे जनमियो, हं रूप में जाण देवकुमार । म्है कुमारपणे चारित लियो, कुमारपणे ब्रह्मचार हो ।।२४।। हं बालपणे वैरागियो, म्हैं बींधाया पिण नहीं कान। ओ म्हारो सातमों पोटपरीहार छै, ते सुण तूं सुरत दे कान ॥२५।। एणेज्ज नैं मलराम नों, मंडिय वले रोहो ताम । भारदाई में उरजुन गोतम-पुत्र, गोसालो मंखली आम हो ॥२६॥ नगरी राजगही नै बारे तिहां, मंडीकुख उद्यान में ताम । उदाई कुंडियाण गोत नों, म्है शरीर छोड्यो तिण ठाम हो ॥२७॥ पेंठो एणेज्ज रा सरीर में, ए पेहिलो पोटपरीहार । बावीस वरस लग हूं रह्यो, एणज्ज रा सरीर मझार हो ॥२८॥ उदलपुर नगर रै बाहिरे, चंदोतर बाग में जाय। तिहां एणेज्ज रो सरीर छोड़ने, पेंठो मलराम रा सरीर मांय हो ॥२६।। मलराम रा सरीर में, रह्यो इकवीस वरस मझार । इण रीते कासप! म्है कियो, ओ बीजो पोटपरीहार ॥३०॥ गोसाला री चौपई, ढा० १३ ३९९. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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