________________
दूहा ११६१. पनरम विण सहु शतक नी, प्रथम जोड़ जय किद्ध।
पछै पनरमा शतक नी, रची जोड़ सुप्रसिद्ध'। ११६२. वर्ण अद्धा निधि चंद जे, भाद्रव कृष्ण सुपक्ष' ।
द्वाविंशति छप्पन प्रवर, मुनि अज्जा गुण दक्ष ।।
१. जयाचार्य 'भगवती जोड़' की रचना कर रहे थे। चौदह शतक की जोड़ पूरी हो गई । पन्द्रहवें शतक में गोशालक का अधिकार है। आचार्य भिक्षु ने उसे आधार बनाकर गोशालक का आख्यान लिखा। उस आख्यान की ४१ ढालें हैं। जयाचार्य ने आचार्य भिक्षु की रचना का सम्मान करते हुए वह शतक यों ही छोड़ दिया और आचार्य भिक्षु रचित ४१ ढालों को जोड़ के साथ जोड़कर सोलहवें शतक का प्रारम्भ कर दिया।
भगवतो जोड़ की रचना वि० सं० १९२४ में सम्पन्न हो गई। एक दशक बाद युवाचार्य मघवा तथा कुछ बुजुर्ग साधुओं ने निवेदन किया-'गुरुदेव ! स्वामीजी के प्रति आपके विनय और सम्मान का औचित्य है पर इतने बड़े और महत्त्वपूर्ण आगम की जोड़ को पूरा करना भी आवश्यक है।' उनके विशेष अनुरोध पर जयाचार्य ने पन्द्रहवें शतक की जोड़ रची पर रचना का क्रम बदल दिया। अन्य सभी शतकों में रागिनी बद्ध ढाले हैं जबकि प्रस्तुत शतक दोहों में निबद्ध है।
चौदह शतक तक ढालों की संख्या ३०५ है। सोलहवें शतक का प्रारम्भ ३४७ वीं ढाल से होता है । बीच की संख्या आचार्य भिक्षु रचित 'गोशालक आख्यान' की ४१ ढालों की गणना से पूरी कर दी गई। पन्द्रहवें शतक की रचना एक दशक बाद हुई यह बात जयाचार्य कृत इसी दोहे से प्रमाणित होती
है। इस दृष्टि से उस आख्यान को पन्द्रहवें शतक के परिशिष्ट में दिया गया है। २. पन्द्रहवें शतक की जोड़ का रचनाकाल वि० सं० १९३४ भाद्रपद मास का कृष्णपक्ष है। इसका संकेत प्रस्तुत पद्य में है। संस्कृत में संख्या की गणना का क्रम उलटा रहता है। उस समय संवत तिथि आदि का आकलन प्रायः प्रतीकात्मक शब्दों के द्वारा किया जाता था । जयाचार्य ने भी उसी क्रम को स्वीकार किया है । प्रस्तुत पद्य में चार शब्द हैं-वर्ण, अद्धा, निधि और चंद । चन्द्रमा १ होता है। निधियां ९ होती हैं। अद्धा-काल ३ होते हैं-भूत, भविष्य और वर्तमान तथा वर्ण ४ होते हैं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । इस प्रकार १९३४ की संवत इस शतक का रचनाकाल है।
३८. भगवती जोड़
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org