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________________ १६. इमहिज संकोच ने पसारे, ठाणं एम कहेह जी। ऊर्द्ध थायवो तथा बेसवो, तथा सूयवो जेह जी ।। १७. सेज्ज ते शय्या वसति प्रति, निसीहियं इम हुँत जी। अतिहि अल्प काल वसति प्रति, केवलज्ञानी करंत जी ।। १८. प्रभ! केवली रत्नप्रभा प्रति, रत्नप्रभा छै एह जी। इहविध ते जाणें - देखे ? जिन कहै हंता जेह जी ।। १६. जिम प्रभु ! केवली रत्नप्रभा प्रति, जाणै नैं देखत जी। तिम सिद्ध पिण जाण नैं देखै ? श्री जिन भाखै हंत जी। २०. प्रभु ! केवली सक्करप्रभा प्रति, जानें देखत जी? ___ एवं चेव इमज जावत वलि, अधः सप्तमी हुंत जी ।। १६. एवं आउंटेज्ज वा पसारेज्ज वा, एवं ठाणं वा 'ठाणं' ति उर्द्ध वस्थानं निषदनस्थानं त्वग्वर्तनस्थानं चेति । (वृ० प० ६५७) १७. सेज्ज वा निसीहियं वा चेएज्जा। 'सेज्ज' ति शय्या-वसति 'निसीहियं' ति अल्पतरकालिका वसति 'चेएज्ज' त्ति कुर्यादिति । (वृ०प०६५७) १८. केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभा पुढवीति जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। (श० १४११४७) १९. जहा गं भंते ! केवली इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणइ-पासइ, तहा णं सिद्धे वि इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणइपासइ? हंता जाणइ-पासइ। (श०१४।१४८) २०. केवली णं भंते ! सक्करप्पभं पुढवि सक्करप्पभा पुढवीति जाणइ-पासइ? एवं चेव । एवं जाव अहेसत्तम। (श० १४११४९) २१. केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं सोहम्मकप्पे त्ति जाणइ-पासइ ? हंता जाणइ-पासइ एवं चेव। २२. एवं ईसाणं, एवं जाव अच्चुयं । (श० १४।१५०) केवली णं भंते ! गेवेज्जविमाणं गेवेज्जविमाणे त्ति जाणइ-पासइ ? एवं चेव । २३. एवं अणुत्तरविमाणे वि। (श. १४३१५१) केवली णं भंते ! ईसिंपन्भारं पुढवि ईसिंपन्भारपुढवीति जाणइ-पासइ ? एवं चेव। (श० १४।१५२) २४. केवली णं भंते ! परमाणुपोग्गलं परमाणुपोग्गले त्ति जाणइ-पासइ ? एवं चेव । २५. एवं दुपएसियं खंध, एवं जाव- (श० १४११५३) जहा णं भंते ! केवली अणंतपएसियं खंध अणंतपएसिए खंधे त्ति जाणइ-पासइ। २६. तहा णं सिद्धे वि अणंतपएसियं खंध अणंत पएसिए खंधे त्ति जाणइ-पासइ? हंता जाणइपासइ। (श० १४११५४) सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति। (श०१४।१५५) २१. हे प्रभु ! केवली सौधर्म कल्प प्रति, सूधर्म कल्प छै एह जी। इणविध जाणे-देखै ? हंता, एवं चेव कहेह जी। २२. इम ईशाण जाव इम अच्युत, ग्रैवेयक भगवंत जी ! केवलज्ञानी जाणे-देखे? एवं चेव उदंत जी।। २३. एम अनुत्तर पवर विमाणज, केवली हे भगवंत जी! सिद्धशिला प्रति जाणें-देखै ? एवं चेव कहंत जी॥ २४. प्रभु ! केवली परमाणु प्रति, परमाण छै एह जी। ___ एम केवली जाणें-देखै ? एवं चेव कहेह जी। २५. दोय प्रदेश खंध इम जावत, जिम प्रभु ! अनंतप्रदेश जी। अनंतप्रदेशिक ए इम केवली, जाण-देखे अशेष जी। २६. तेम सिद्ध पिण अनंतप्रदेशिक, जाणें-देखै तंत जी? हंता जाण नैं देख छै, सेवं भंते ! सेवं भंत ! जी॥ २७. चवदम शतक नों दशम उद्देशक, अर्थ अनोपम ख्यात जी। चवदम शत पिण थयो संपूरण, विविध प्रश्न अवदात जी। २८. संवत उगणीस बावीस, प्रथम जेठ सुदि बीज जी। सहर लाडणूं दीख्या मोच्छव, वलि अणसण महोत्सव चोज जी। २६. उदयराज तपस्वी तपसा रा, बावीसमें दिन जेह जी। संथारो पचख्यो अति हठ सू, गुणपचासम दिन एह जी।। ३०. संत संताली सौ समणी रो, मेळो तीरथ च्यार जी। संथारा नो जबरो महोत्सव, देख्यां हरष अपार जी॥ २९६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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