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________________ २०. नमोत्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरि यस्स धम्मोवदेसगस्स २०. नमस्कार होयजो अम्मड़, परिव्राजक नैं पहिछाणी। म्हारा धर्म आचार्य धर्म उपदेशक छै तसु जाणो।। सोरठा २१. 'संन्यासी नों धर्म, धर्माचार्य तेहनों। तास धर्म नो मर्म, उपदेशक पिण ते हंतो।। २२. तिण सं लोकिक हेत, नमस्कार तिण ने कियो। जिन आज्ञा नहिं तेथ, धर्म नहीं छै तेह में ।। २३. जिन धर्म पिण तिण पास, पाम्यो तो पिण तेहथी। पूरव तांतो तास, तुटो नहि तिण कारण ।। २४. पहिला पिण तसु तेह्, नमस्कार करता हुता। अंतकाल पिण एह, पक्ष न तूटो ते भणी ।। २५. उष्ण उदक परिहार, सचित्त उदक वहितो लिये। ते पिण दीधो धार, ते पिण पक्षज मत तणी।। २६. गुरु चेलां री रीत, नमस्कार करता हुंता। अंतकाल संगीत, तेहिज विधि त्यां साचवी ।। २७. सिद्ध अरिहन्त नैं जाण, नमस्कार लोकोत्तरे । अम्मड़ प्रति पहिछाण, नमस्कार लोकीक मग ।। २८. सिद्ध अरिहंत ने सार, नमस्कार जिन आण है। अम्मड़ ने नमस्कार, तिणमें जिन आज्ञा नथी ।। २६. सिद्ध अरिहंत में सार, सामायिक पोसा मझे। नमस्कार थी धार, कर्म निर्जरा पुन्य बध ।। ३०. अम्मड़ ने नमस्कार, सामायिक पोसा मझे। करै कोई अवधार, तो भागै व्रत तेहनों ।। ३१. सिद्ध अरिहंत ने सार, नमस्कार निरवद्य छ । अम्मड़ नै नमस्कार, कीधां सावज जोग है। ३२. श्रावक पासे कोय, धर्म पाय व्रत आदरया। सामायिक में जोय, नमस्कार न करै तसु ।। ३३. सामायिक में जाण, त्याग जोग सावज तणां । तिण कारण पहिछाण, सावज जाणी ए तज्यो ।। ३४. सामायिक रै माय, नमस्कार गहि नै करै। व्रत भंग तसु थाय, तिमहिज अम्मड़ ने कियां ।। ३५. अम्मड़ नैं नमस्कार, संथारो कीधां प्रथम । पाप तणों परिहार, नहिं कीधो तिण अवसरे॥ ३६. त्याग्या पाप अठार, तठा पछै शिष्य अम्मड़ नां। निज गुरु नै नमस्कार, न कियो तेह विचारजो।। ३७. केइ अज्ञानी तास, एहवी करै परूपणा। धर्म पायो जिण पास, नमस्कार करवो तसु ।। ३८. सरधै तिण में धरम, तो सामायिक पोसा मझे। ते उपगारी परम, किम नमस्कार तसु नहि करै।। ३६. ए जाण निरवद्य जोग, तो सामायिक नै विषे। निरवद्य तणो प्रयोग, ते तो त्याग्यो छै नथी ।। श० १४, उ०८, ढा० ३०१ २७९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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