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________________ १ भांगो प्रथम विकल्पे १.१ तम ३ तमतमा १ भांगो दूज विकल्पे १.२ तम २ तमतमा १ भांगो तीज विकल्पे १.३ तम १ तमतमा एवं तम थी ३ विकल्पे ३ भांगा। एवं ४ जीव नां द्विकसंजोगिया विकल्प ३, भांगा सठ। वा०-हिवै च्यार जीवां रा तीनसंजोगिया भांगा कहै छ-तेहनां विकल्प तीन । तीनसंजोगिया मूल भांगा ३५ तीन विकल्प माट, त्रिगुणां कीधा १०५ भांगा हुवै । एक विकल्प करि रत्नप्रभा थी १५ हुवै, तीन विकल्प माटै त्रिगुणा कीयां ४५ हुवे। रत्नप्रभा थी १५ इम करवा । रत्न सक्कर थी ५, तीन विकल्प मार्ट त्रिगुणा कीधा १५ हुवै, रत्न वालु थी ४, तीन विकल्प माटै त्रिगुणा कीधां १२ भांगा हुदै, रत्न पंक थी ३, तीन विकल्प माटै त्रिगुणा कीधां हुवै। रत्न धूम थी २, तीन विकल्प माट त्रिगुणा कीधां ६ भांगा हुवै, रत्न तम थी १ भांगो, तीन विकल्प मार्ट त्रिगुणा कीधां तीन भांगा हुदै । एवं रत्न थी सर्व भांगा ४५ हुवै, तिणमें प्रथम रत्न सक्कर थी पांच भांगा, तेहनां तीन विकल्प करि १५ भांगा हुवै ते कहै छै२३. अथवा एक रत्न इक सक्कर, दोय वालुका मांही। अथवा एक रत्न इक सक्कर, दोय पंक तिण पाई ।। वा०--तथा पृथिवीनां त्रिकयोगे एक एको द्वौ चेत्येवं नारकोत्पादविकल्पे रत्नप्रभाशर्कराप्रभाभ्यां सहान्याभिः क्रमेण चारिताभिलब्धाः पञ्च, एको द्वावेकश्चेत्येवं नारकोत्पादविकल्पान्तरेऽपि पञ्च, द्वावेक एकश्चेत्येवमपि नारकोत्पादविकल्पान्तरे पञ्चैवेति पञ्चदश, एवं रत्नप्रभावालुकाप्रभाभ्यां सहोत्तराभिः क्रमेण चारिताभिर्लब्धा द्वादश, एवं रत्नप्रभापंकप्रभाभ्यां नव, रत्नप्रभाधूमप्रभाभ्यां षट्, रत्नप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः। (वृ०प० ४४२) २३. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो वालुय प्पभाए होज्जा अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्कर प्पभाए दो पंकप्पभाए होज्जा। २४,२५ एवं जाव एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। २४. अथवा एक रत्न इक सक्कर, दोय धम कहिवाई। अथवा एक रत्न इक सक्कर, दोय तमा रै मांही ।। २५. अथवा एक रत्न इक सक्कर, दोय तमतमा थाई। रत्न सक्कर थी धुर विकल्प करि, ए पंच भंग कहाई॥ हिवं रत्न सक्कर थी पांच भांगा दूजे विकल्पे कहै छ२६. अथवा एक रत्न दोय सक्कर, एक वालुका मांही। अथवा एक रत्न दोय सक्कर, एक पंक तिण पाई। २७. अथवा एक रत्न दोय सक्कर, एक धूम कहिवाई। अथवा एक रत्न दोय सक्कर, एक तमा रै मांही ।। २८. अथवा एक रत्न दोय सक्कर, एक तमतमा माही। रत्न सक्कर थी ए पंच भंगा, द्वितीय विकल्पे थाई ।। हिवं रत्न सक्कर थी पांच भांगा तृतीय विकल्पे कहै छ२६. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, एक वालुका मांही। अथवा दोय रत्न इक सक्कर, एक पंक तिण पाई। २६-२८. अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा । २६-३१. अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए श० ६, उ० ३२, ढाल १७७ ५३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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