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________________ श्वेत वस्त्रे ढांकियो, तनु सूख स्पर्श पवित्र ही, राणि काजै मृदु भद्रासण, नाना विविध विचित्र ही। २०. नृप कहै नफर बोलाय नैं, अधिक हर्ष उचरंगो जी, शीघ्र तुम्हे देवानुप्रिया ! महा निमित्त अष्ट अंगो जी। अष्ट अंग महा निमित्त परोक्ष अर्थ प्ररूपणा, करणहारा महाशास्तर सत्र अर्थ निरूपणा । बिहूं धारक वली कौशल, विविध शास्त्राध्याय ने, तेड़िये शुभ स्वप्न पाठक, नृप कहै नफर बोलाय नैं । अथवाऽस्तरजसा-निर्मलेन मृदुमसूरकेणावस्तृतं (वृ० ५० ५४२) २०. कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अढंगमहानिमित्तसुतत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढ़ए सद्दावेह । (श० ११११३८) 'अलैंगमहानिमित्तसुत्तत्थधारए' त्ति अष्टागं-अष्टावयवं यन्महानिमित्तं-परोक्षार्थप्रतिपत्तिकारणव्यु त्पादक महाशास्त्रं तस्य यौ सूत्रार्थों तो धारयन्ति ये ते तथा तान् (वृ० प० ५४२) २१. अट्ट निमित्तंगाई दिव्वुप्पात तरिक्ख भोमं च । अंगं सर लक्खण वंजणं च तिविहं पुणेक्केक्कं ॥ (वृ० प० ५४२) २३. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सिग्धं तुरियं चवलं चंडं वेइयं हत्यिणपुर नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव तेसि सुविणलक्खणपाढगाणं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए सद्दा वति । (श० ११११३६) २१. दिव्य उत्पातज अंतरिख, भोम अंग स्वर जान। लक्षण व्यंजन एक-इक त्रिविध त्रिविध पहिछान ॥ २२. सूत्र थकी नैं वृत्ति थी, वात्तिक थी फून जोय। तीन-तीन औ भेद है, अष्ट निमित्त नां सोय ॥ २३. *सेवग नृप वच सांभली, जाव कियो अंगीकारो जी, बल राजा नां समीप थी, नीकलियो तिण वारो जी। नीकल्यो तिण वार सेवग, शीघ्र त्वरित चपला गई, चंड गति वलि वेगवंतज, हथिणापुर मध्य थई । स्वप्न लक्षण पाठकां नां, घर तिहां आवै चली, तेह पाठकां प्रतै तेड़े, सेवग नप वच सांभली। सोरठा २४. शीघ्र प्रमुख पद पंच, एकार्थे ए आखिया। उत्सुक उत्कर्ष संच, ते प्रतिपादन तत्परा ।। २५. *स्वप्न लक्षण पाठक तदा, नृप में सेवग सोयो जी। तेडयां हरख पाया घणां, अंतर आनंद होयो जी। अंतर आनंद अधिक पाया, मंजन वलि बलिकर्म करी। जाव अलंकृत अंग करिने, सरसव द्रोब शिरे धरी । एह मंगल करी निज-निज घर थकी चाल्या मुदा । हत्थिणापुर मध्य थई ने, स्वप्न लक्षण पाठक तदा ॥ २६. भवन महिपति - तिहां, अवतंसक मुख्यावासो जी। तिहां आवै आवी करी, मिल्या एकठा तासो जी। द्वार मूले एकठा मिल, जिहां नृप नी बारली। उपस्थानसाला जिहां बल न पति सह आवै चली। कर जोड़ बल अवनीस नैं, जय विजय वर्धाप जिहां। आशीर्वच मुख उच्चरै ते, भवन महिपति नुं तिहां ॥ २७. स्वप्न लक्षण पाठक प्रते, बल राजा ए वंद्या जी। पूज्या मैं सत्कारिया, सनमाने आनंद्या जी। सनमान दीधे जुजुआ, जे पूर्वे नरपति थापिया। तेह भद्रासणे बैठा, हरष थी नृप आपिया। २४. 'सिग्ध' मित्यादीन्येकार्थानि पदानि औत्सुक्योत्कर्षप्रतिपादनपराणि । (वृ० ५० ५४२) २५. तए णं से सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रणो कोडुंबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हट्ठतुट्ठा व्हाया कयबलिकम्मा जाव (सं० पा०) सरीरा सिद्धत्थगहरियालियाकयमंगलमुद्धाणा सएहि-सएहि गेहेहितो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता हत्थिणपुरं नगरं मज्झं मज्झेणं २६. जेणेव बलस्स रणो भवणवरवडेंसए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल 'बलं रायं जएण विजएणं वद्धाति । २७. तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलेणं रण्णा वंदिय पूइय-सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति । (श० ११।१४०) तए णं से बले राया पभावति देवि जवणियंतरियं ठावेइ, ठावेत्ता पुष्फफलपडिपुण्णहत्थे *लय : इक दिन साधूजी वंदवा गई सुभद्रा नारो जी श० ११, उ० ११, ढाल २४० ४४३ Jain Education Intemational ation Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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