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________________ १७. जी हो जाव शब्द मांहे कह्या कांड, उववाइ' में पाठ अनेक । जी हो मनगमती वाणी करी, बोले स्तवन करता विशेख | १८. जी हो जय जय नंदा आपरे कांइ, जय जय भद्दा जाण । जी हो जय जय नंदा भद्र वली, मंगलीक वर्द इम वाण ॥ १६. जी हो अणजीतां नें जीतज्यों कांइ, जीतां नीं प्रतिपाल । , जी हो जीता मण्भ बज्यो तुम्हे, हिवं एहनों अर्थ निहाल ॥ २०. जी हो शत्रु पक्ष अणजीतिया कोई त्यांने जीतेज्यो गुणमाल । जी हो मित्र पक्ष जीतां प्रतं त्यांरी कीग्यो पणी प्रतिपाल' ।। २१. जी हो विषन सर्व जीती करी, यसो स्वजन मध्य हे देव ! जी हो सुरवृद में इंद्रनी परे, तुम्हे राज कीभ्यो स्वयमेव ॥ २२. जी हो तारां में जिम चंद्रमा जी हो नरां में भरत तणी परे, २३. जी हो आप धणां वर्षों लगे, बलि कांइ, धरण नाग रे मांय । आप जी हो वह लाखो वर्षां लगे २४. जी हो पाप रहित संपूर्ण छतो राज करो सुखदाय ॥ पणां संकटां वास । पालो नूप-पद सुख नीं राश ॥ कांई हरय संतोष सहीत । जी हो परम आउसो पालज्यं, जाव शब्द में अर्थ संगीत | २५. जी हो इष्ट वल्लभजन आपरा कांइ, परिवार तेह संघात । जी हा राज हत्थिणपुर नगर नों, पालज्यो रूड़ी रीत विख्यात ॥ २६. जी हो अन्य बहु ग्रामागर नगर नों कांइ, जावत ही ए राज । जी हो करता विचरो इम कही, उच्चरै जय शब्द आवाज || २७. जी हो शिवभद्र कुमर राजा थयो, मोटो हेमवंत जिम जाण । जी हो वर्णन तिगरी अति घणो जाव विचरं पुन्य प्रमाण ॥ २८. जी हो दोयसौ नें अठावीसमी, आखी ढाल रसाल अपार । भिक्लू भारीमात ऋषिराय थी कांइ, 'जय जय' संपति सार ॥ ढाल : २२६ दूहा 1 १. तिण अवसर ते शिव नृपति कदा अन्यदा पेख । शोभनीक तिथि करण दिन नक्षत्र मुहतं देव ॥ २. विस्तीर्ण असणादिचि रंधावी नं सार । मित्र ज्ञाति वलि निजग प्रति, परिजन नैं परिवार ॥ ३. राजा क्षत्रिय प्रति वलि हैन आमंत्र स्वजन्न । तदनंतर मज्जन कियो, जाव विभूषित तन्न ॥ " १. सू० ६८ २. अंगसुत्ताणि १९६१ में ऐसा पाठ नहीं है । वृत्ति में यह पाठ है । जयाचार्य को प्राप्त आदर्श में यह पाठ रहा होगा, पर अंगसुत्ताणि में यह पाठ न होने के कारण यहां वृत्ति का पाठ उद्धृत किया गया है। ४०४ भगवती-जोड़ Jain Education International १७. मनुष्याहि मणामाहिं अभित्तो व एवं वदासी१८. जय-जय नंदा ! जय जय भद्दा ! भद्दं ते १६. अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि २०. अजियं च जिणाहि सत्तुपक्खं जियं च पालेहि मित्तपक्ख ( वृ० प० ५२० ) २१. जियविग्धोऽविय वसाहि तं देव ! सयणमज्झे इंदो इव देवाण ( वृ० प० ५२० ) २२. चंदो इव ताराणं धरणो इव नागाणं भरहो इव मनुवाणं ( वृ० प० ५२० ) बहूई वाससहस्साई For Private & Personal Use Only २२. बहूई बासा बहूई बाससवाई बहूई वासस्यसहस्साई २४. अणहसमग्गो तुट्ठो परमाउं पालयाहि २५. परिणापुर नगरस २६. अण्णेसि च बहूणं गामागर-नगर जाव (सं०पा० ) विहराहि ति कट्टु जयजयजति ( ११०६१) २७. तए णं से सिवभद्दे कुमारे राया जाते मया हिमवंत ...वण्णओ जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ ।. (१९६२) १. तए णं से सिवे राया अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहिकरण दिवस मुहुत्त - नक्खत्तंसि २. विपुलं असण- पाण- खाइम - साइमं उवस्थावेति उवक्खडावेत्ता मित-नाइ नियग-सयण संबंधि-परिजणं २. रायागो व विआिता तो पच्छा न्हाए जाव (सं० पा० ) सरीरे www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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