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________________ शक्र तणां सुविचार, सामानिक सुखकारी । सुर सहंस चउरासी सार, बड़ा है जशपारी । जशधारी जी, अति हितकारी, वायव्य ईशाण बैठा सारी । ओ तो सखर सुराधिप शक्र, शक्र परम मुद्रा प्यारी ॥ सोरठा २७६. * हिवै २७७. सहंस चउरासी जाण, भद्रासण अति ओपता । वायव्य नें ईशाण, बैठा तिहां सामानिका ॥ २७८. हि पूर्व दिश मांय भद्रासण रै मांय, तिहां अग्रमहेषी आठ, रूप अधिक झिला जी, आभरण उजला, भद्रासण अष्ट भला । करि अधिक भिला ॥ अतिही युति कांतिकरी अमला । ओ तो सबल शक्र सहस्राक्ष, सुजश करता सगला ॥ सोरठा करण २७६. सोल सोल सहंस सार, रूप वैक्रिय शक्ति तास परिवार, अग्रमहेषी नीं नीं । असी ।। द्वादशाही | उमही । कही || २८० *हि आग्नेयी कूण सुजाण, सहस्र फुन ए तो पवर भद्रासण जाण, तिहां बैठा बैठा उमही जी, प्रकृति शुभही, बार सहस्र अभ्यंतर परिपद ही । ओ तो प्रबल पुरंदर पेख, तास अति कीर्ति २८१. दक्षिण चवद हजार, मझिम ही परिषद नैरुत कूण मकार, परिषदा बाहिर बाहिर ना जी देवाधिप नां, सूर पट दश सहस्र अधिक सुमना । ओ तो मणिधारी मघवान, अमर पालै अपना ॥ सोरठा नां । नां । Jain Education International २८२. दक्षिण दिशि में देख, चउद सहस्र स्वां बैठा सुविशेख, मज्झिम परिषद नां २०३. नेरु कूण मझार, सोल सहस्र त्यां बैठा सुविचार, बाहिर परिषद नां २०४. पश्चिम दिशि में देख, सप्त शोभंज अति । भद्रासण सुविशेख, तिहां अनिकाधिपति । अनिकाधिपति जी, तसु सखर यूति वर परम पीत देवाधिप थी। ओ तो वज्रपाणि विबुधेश, तास सिर अधिक रती ॥ २०५ पुन चिहुं दिश ₹ मांय, आत्मरक्षक मिणिया । इक इक दिश में सहंस चोरासी सुर गिणिया । सुर गिणिया जी सूत्रे भणिया कर विविध आयुध जोधा वणिया । ओ तो अपछरपति अमरेश, पुव्व जिन वच सुणिया ॥ 1 * लय म्है तो जास्यां जास्यां वंदन वीर ३७६ भगवती-जोड़ भद्रासणे । सुरा ॥ भद्रासणे । सुरा ॥ २७६. तए णं तस्स सामाणि साहसीओ २७७. उत्तरपुरथिमिले .... (राप० ० ६५० ) "भद्दा सणसाहस्सीसु निसीयंति २७८. तए णं तस्स पुरत्थिमेणं....... अग्गमहिसीओ शद्दाससु निसीयति । (राय० सू० ६५६ ) २०. तए णं तस्स परिसाए... देवसाहसीओ निसीयंति । (राय० सू० ६५८ ) For Private & Personal Use Only दाहिणपुरमेणं अभितरियाए भाससाहस्सी (राम० सू० ६६०) २८१. तए णं तस्स दाहिनेणं मज्झिमाए परिसाए.... देवसाहस्सीओ भासण साहसीहि निसीति (राय० सू० ६६१ ) तए णं तस्स .......दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए. देवसाहतीतो भासण साहस्सीहि निसीयंति । ( राय० सू० ६६२ ) २८४. तए णं तस्स पच्चत्थिमेणं सत्त अणियाहिवयणो सतहि भद्दासह णिसीयंति (राय० सू० ६६३) ..... २८५. तए णं तस्स ...चउद्दिसिं ......आय रक्ख-देवसाहस्सीनो भासण साहस्सीहि णिसीमंति ( राय० सू० ६६४ ) www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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