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कर सिद्धायतन नां बहु मध्य देश भाग नै विष पूंजणी करी पूंजी, उदक-धारा सींच, चंदन करी पंचांगुली हाथा दिय, पुष्पपुंज उपचार, धूप-दान करें।
तिवार पछै सिद्धायतन नां दक्षिण द्वार विषे आवी पूंजणी ग्रही ने तिण पूंजणी करिक द्वार-शाखा, पूतल्या अन सर्प ना रूप प्रत पूज। तिवार पछै उदकधारा सींचे, गोशीर्ष चंदन चर्च, पुष्पादि चढाव, धूप देव ।।
तिवार पछै दक्षिण द्वारे करि नीकली ने दक्षिण नां मुख-मंडप ने बहु मध्य देश भाग विषे पूंजणी करी पूंजी ने उदक-धारा सींचे,चंदन करि पंचांगुली हाथा दिय, पुष्प-पुंज उपचार, धूप-दान करें, करिने पश्चिम द्वारे आवी ने पूर्ववत पूजा कर। उत्तर दिशे थंभपंक्ति पूजे । पछै पूर्वे द्वारे आवी दक्षिण द्वार नी पर पूजा करै । पर्छ दक्षिण द्वारे तिमहिज पूजा करै । तिण द्वार करी नीकली प्रेक्षा गृह मंडप ने बहु मध्य देश भागे आवी ने आषाढक, मणिपीठिका अने सिंहासन प्रतै पूंजणी करी पूंजी, उदक-धारा सींच, चंदन-चर्चा, पुष्प-पूजा, धूप-दान करी तेहिज प्रेक्षागृह-मंडप नै अनुक्रम करिकै पश्चिम द्वार उत्तर थंभ-पंक्ति पूर्व दक्षिण द्वार नी अर्चा करीने दक्षिण द्वार करि नीकली नै चैत्य थूभ अनै मणिपीठिका प्रत पूंजणी करी पूंजी उदक-धारा सींचे, सरस गोशीर्ष चंदने करी पंचांगुली हाथा देइन अने पुष्पादिक चढावी नै धूप देव ।
तिवार पछै जिहां पश्चिम दिशि नीं मणिपीठिका तिहां आवै । तिहां आवी ने जिन-प्रतिमा देखी नै प्रणाम करै, करीने पूंजणी करी पूंज, सुगंध जले करी स्नान करावं, सरस गोशीर्ष चंदन करी गात्र लीप, देवदूष्य युगल पहिराव, पुष्पादिक चढावै, प्रतिमा आगे पुष्प-पुंज उपचार, धूप दिये, दिव्य तंदुले करी आठ मंगलीक आलेख, एकसौ आठ छंद करिक स्तुति कर, प्रणिपात दंडक पाठ करिनं वांद, नमस्कार कर, तेहिज अनुक्रम करिक उत्तर पूर्व दक्षिण प्रतिमा नी पिण अर्चनिका करीनै दक्षिण द्वारे करी नीकली - दक्षिण दिशि नै विषे जिहां चैत्य वृक्ष छ, तिहां आवी नै चैत्य वृक्ष नी द्वार नी पर अर्चनिका करै।
तिवार पछ महेंद्र ध्वजा नी, तिवार पछै जिहां दक्षिण दिशि नी नंदा पुष्करणी, तिहां आवै । आवी ने तोरण पावड़िया ने विषे रही शालभंजिका अने सर्प ना बहु रूप में पूजणी करी पूंज, उदक-धारा सींच, चंदन-चर्चा पुष्पादि चढाव धूप दान करिनै सिद्धायतन न प्रदक्षिणा करीने उत्तर दिशे नंदा पुष्करणी ने विषे आवी ने पूर्वली पर तेहनी अर्चा कर।
तिवार पछै उत्तर नां चैत्य वृक्ष विषे, तिवार पछै उत्तर नां चैत्य थूभ ने, तिवार पर्छ पश्चिम उत्तर पूर्व दक्षिण जिन प्रतिमा नी पूर्वली पर पूजा करीनै उत्तरा नां प्रेक्षा-गृह-मंडप विषे आवै। तिहां दक्षिण नां प्रेक्षा-गृह-मंडप नी पर सर्व वक्तव्यता कहिणी।
तिवार पछ दक्षिण स्तंभ पंक्ति करिके नीकली ने उत्तर में मुख मंडपे आवै । तिहां पिण दक्षिण नां मुख मंडप नी पर सर्व पश्चिम उत्तर पूर्व द्वार विषे अनुक्रम करिके पूजा करीने दक्षिण स्तंभ पंक्ति करिक नीकली नै सिद्धायतन में उत्तर द्वारे आवी ने पूर्ववत अर्चा करीने पूर्व द्वारे आवै । तिहां पिण अर्चा पूर्ववत करीने पूर्व नां मुख-मंडप में दक्षिण द्वार पश्चिम थंभ-पंक्ति उत्तर पूर्व द्वार ने विषे अनुक्रम करिके पूर्व कही तिम पूजा करीने पूर्व द्वारे करी वलि अनुक्रम करिक नीकली नै प्रेक्षा-घर-मंडप नै विषे आवै । पूर्ववत मध्य भाग दक्षिण द्वार पश्चिम थंभ पंक्ति उत्तर पूर्व द्वारे पूर्ववत पूजा करै ।
तिवारै पछ पूर्व प्रकार करि केहीज अनुक्रम करिक चैत्य-धूभ, जिन-प्रतिमा, ३६६ भगवती-जोड़
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