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१९५ बार शाखा पुतलिया पन्नग, पूंजे जल सीचे चंदन चर्चे
११६. जिहां दक्षिण नां मुख मंडप ने तिहां आये आवी द्वारशाखा में
वा० - इहां दक्षिण दिशि नां मुख मंडप नै तीन द्वारहीज छं, ते मा तीन द्वारहीज पूजे। अने उत्तर दिशि थांभा नीं पंक्ति पूजै । हिवं दक्षिण नां मुख मंडप न द्वारे करी नीकली प्रेक्षा गृह मंडपे आवै, पूजे ते अधिकार कहै छं
२००. दिव्य उदक धारा कर सींचं वली पुष्पादिक प्रतै चढ़ावे,
*ओ तो इन्द्र अभिषेक सधीको रे, कीधै सुरपति नीको । ओ तो करे द्रव्य मंगलीको रे, ते कारज लोकीको ।। (भुपदं ) १६७. जिहां दक्षिण नों प्रेक्षा घर मंडप, प्रेक्षा घर मंडप नो जेह । वह मज्झ देश भाग जिहां बं, तिहां अवसाद कहेह || १८. ते अखाड़ो अर्थ वज्रमय, जिहां मणिपीठिका तायो । जिहां सहासण छ तिहां आवै, आवी ने सुररायो । ११९. मोरपिन्छ नीं पंजणी ग्रही ने वच अखाड़ प्रतेहो । मणिपीठिका सिहासन प्रति मयूरपिच्छे पंजेहो । गोशीर्ष चंदन वर्षहो । संसारिक खाते हो ।
२०२. जिहां दक्षिण नां प्रेक्षा घर तिमहिज कहिवो पूरववत जे
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तिमहिज सर्व कहेह । पूरववत सहु जेह ॥
२०१. ऊपर थी मांडी महितल लग, जावत धूप उसे गुरपति,
२०३. उत्तर दिशि थांभा नीं पूर्व द्वारे आवी तिमहिज
दक्षिण दिशि ने द्वार तिमहिज सर्व विचार ||
*लय : ए तो जिन मार्ग नां राजा
३६२ भगवती जोड़
माला प्रति बांधेहो । पाठ इहां लग जेहो ।
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मंडप ने पश्चिम द्वारे | द्वार - शाखादि प्रकारे ॥
२०४. दक्षिण नों के द्वार तिहां पिण, द्वार शाखा ने पुतलियां फुन,
पंक्ति, पूरववत पूजेहो । द्वार-शासादि विषेो ॥
तिमहिज कहिवूं जेहो । पन्नग रूप अहो ||
वा० - 'दक्षिण नां प्रेक्षा- घर - मंडप ने घणी परतों में पश्चिम पूर्व द्वार देख्या । किणही परत में पश्चिम, पूर्व, दक्षिण द्वार देख्या, पिण उत्तर दिशे थंभा नीं पंक्ति नों पाठ नथी देख्यूं । पिण इहां तीन द्वार ने उत्तर दिशे थंभ-पंक्ति जणाय छँ । जे दक्षिण नां मुख मंडप ने पश्चिम पूर्व दक्षिण द्वार कह्या । अनें उत्तर थंभ नीं पंक्ति कही तिम इहां प्रेक्षा घर मंडप नै विषे तीन द्वार ने उत्तर दिशे थंभ - पंक्ति संभवं । बलि आगल उत्तर ने प्रेक्षा घर मंडपे दक्षिण दिशे थंभ-पंक्ति पाठ में कही छँ । तिम इहां दक्षिण नं प्रेक्षा घर-मंडपे उत्तर दिशे थंभ पंक्ति संभव |
१६५. दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए ये लोमहत्थेणं पमज्जइ पमज्जित्ता तं चैव सव्वं । (राय० ० २१०) १६. जेणेव वाहिगिलस्य मूहमध्यस्त दाहिणिले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दारचेडाओ य.... तं चैव सव्वं । (राम० ० २६९ )
११७,१२८. जेणेव दागिने पेच्छापर-मंडने जे दाहि तिस-पेपर-मंडवस्त बहुमतसभागे जेव
इम अक्खा जेणेव मणिवेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता (राय० सू० ३०० ) १६६. लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता अक्खाडगं च मणिपेयिं च सीहाणं च लोमहत्व एवं मजद (राव० सू ३००) २००. दिखाए दनधाराए अन्मुखे भूस्खेत्ता सरमेगं गोसीस चंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं .........करेइ (राय० सू० ३००) २०१. आससोबत बिलवारियमस्यामकलाब करेइ जाव (सं० पा० ) धूवं दलयइ । (राय० सू० ३००) २०२. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघर - मंडवस्स पच्चत्थि - मिल्ले दारेतं चेव ।
२०३. [उत्तरिना खंभपंती ? ] पुरथिमिल्ले दारे तेणेव तं चेव २०४. जेवदाहिलास दारे तेणेव उवागच्छइ,
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(राप० सू० ३०१)
तं चेव । जेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ( राय० सू० ३०२, ३०३ ) छर-मंडवस्स दाहिणिले उवागच्छित्ता तं चेव । ( राय० सू० ३०४ )
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