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२१. समचं देव तणां काए, तीन आलावा तेह | असुर नो तिम इहां ए. आलावा तीन कहे ॥ २२. अल्पऋद्धिक महाऋद्धिक नों ए, प्रथम आलावा पेख । समक समऋद्धि नों ए दूजो आसावो देख ॥ २३. महद्धिक अल्पऋद्धिक तणों ए, तीजो आलावो ताय । समुच्चय सुर तणां ए, तेम असुर नां थाय ॥ २४. वाणव्यंतरा जोतिषी ए, वैमानिक इम जाण । आलावा एहनां ए. तीन-तीन पहिछाण || २५. प्रभु ! देव अल्पऋद्धि नों धणी ए, महद्धिकसुरी विच होयजावे ? तब जिन कहै ए, अर्थ समर्थ नहि कोय ॥
२६. प्रभु ! देव सरीखी ऋद्धिनों वणी ए, समऋद्धि सुरी विच होयजावे ? तब जिन कहै ए, अर्थ समर्थ नहि कोय ।। २७. जो प्रमादी ते देवी हुवै ए, तो तसु विच होय जाय । आलावो दूसरो ए, पूर्व कह्यो ज्यूं कहाय ॥ २. प्रभु देवता महाऋदिनों धणी ए. !
अल्प ऋद्धि सुरी विच होयजावे ? तब जिन कहै ए, हंता समर्थ जोय ।। २१. इम असुर व्यंतर जोतिषी वणां ए तीन-तीन आलाव वैमानिए. सुर सुरो वीच कहान । ३०. प्रभु! देवी ऋद्धिवंत, महद्धिक सूर विच होय
अवलोय || र विच होय
जावे ? तव जिन कहै ए, अर्थ समर्थ नहि कोय | ३१. प्रभु! देवी सरीखी ऋद्धिवंत ए समऋद्धिसुर विच होय । आलावो दूसरो ए, पूर्ववत ३२. प्रभु! देवी महाऋद्धिए अल्प ऋद्धि जावं ? तब जिन कहे ए. हंता समर्थ जोय ॥ ३३. इम असुर व्यंतर जोतिषी तणां ए, तीन-तीन आलाव । वैमानिक नां वली ए, देवी देव - विच जाय || ३४. प्रभु! देवी अल्प द्धिवंत ए महद्धिक देवी बिच होयअर्थ समर्थ नहि कोय || विचै ए, जावा समर्थ नांय । प्रमत्तपणें जो हुवं ए, तो पूर्ववत विच जाय ॥ ३६. देवी महाऋद्धिवंत ए. अल्पऋद्धि देवी विष होयजाये ? तब जिन कहे ए. हंता समर्थ जोय ॥ ३७. इमहिज असुरकुमार नांए, कहिवा तीन आलाव । व्यंतर जोतिषी तणां ए, तीन आलाव कहाव ॥
जावे ? तव जिन कहै ए, ३५. इम सम ऋद्धि देवी समऋद्धि
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१. इसके बाद अंग सुत्ताणि भाग २ श० १०।२९ में 'एवं जाव थणियकुमारेणं' पाठ है पर इसकी जड़ नहीं है।
२. इस ढाल की गाथा २६ से २९ तक की जोड़ विस्तृत पाठ के आधार पर की हुई है। उसका संकेत न अंगसुत्ताणि में है और न वृत्ति में है । इसलिए इन गाथाओं के सामने अंगसुत्ताणि का संक्षिप्त पाठ ही उद्धृत किया गया है।
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२१-२३. एवं असुरकुमारेण वि तिष्णि आलावगा भाणि - यव्वा जहा ओहिएणं देवेण भणिया ।
एवं असुरकुमारेण वि तिम्ति जलावन' सि अपद्धि महद्धिकयोरेकः समद्धिकयोरन्यः महद्धिकाल्पद्विकयोरपर इत्येवं त्रयः । ( वृ० प० ४९९ )
२४. वाणमंतर - जोइसियवेमाणिएणं एवं चेव ।
( श० १०:३१ ) २५. अप्पिढिए णं भंते! देवे महिड्ढियाए देवीए ममो वीइवएना ? नोई समड़े | २६-२१. समिभिते देने मजमणं वीएग्जा ?
एवं तहेव देवेण य देवीए य दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाए । (२० १०,३३)
( श० १०1३२ ) समियाए देवीए
३०-३३. अपिढिया णं भंते ! देवी महिड्ढियस्स देवस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ?
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एवं एसो वि ततिओ दंडओ भाणियव्वो जावमहिड्डिया बेमागिणी अमिडिया देवादिस बीएला ? हंता बीएला ।
( श० १० ३४, ३५ )
३४. अमिडिया णं ते देवी महिढपाए देवीए मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा ? नो इणट्ठे समट्ठे । ३५. एवं समिया देवी समाए देवीए हे।
२६. महादेवी अपिपाए देवीए सहेब |
३७. एवं एक्केक्के तिष्णि तिष्णि आलावगा भाणियव्वा ( श० १०/३६ )
जाव---
श० १०, उ०३, ढा० २१६
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