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________________ संमुच्छिम । ३ । ६. ६ संमि मनुष्य में, ४ गर्भज मनुष्य में अपने ७. ७ संमूमि मनुष्य में गर्भज मनुष्य में अपने ८.८ संमुच्छिम मनुष्य में, २ गर्भेज मनुष्य में ऊपजै । ९. समुच्छिम मनुष्य में १ सर्भे मनुष्य में अपने । हिये संख्यात जीव मनुष्य में अपने तेहना ११ विकल्प करि ११ मांगा क 31 ४१. संसेज मनुष्य प्रवेशन पूछा, समुच्छिम अथवा गर्भज में 1 हिव संख्यात जीवां राद्विकसंजोगिक १ भांगो हुवै ते ११ विकल्प करि ११ भांगा कहै है जिन कहै सुण गंगेय ! इक योगिक भंग वेय ॥ ४२. अथवा एक समुच्छिम मनुष्ये, संख्याता गर्भेज । अथवा दोयमुच्छिम मनुष्ये, गभिज में संवेज | ४३. अथवा तीन संमुच्छिम मनुष्ये अथवा च्यार संमुच्छिम मनुष्ये, ४४. अथवा पांच संमुच्छिम मनुष्ये, अथवा पट समुच्छिम मनुष्य ह्र, ४५. अथवा सप्त संमुच्छिम मनुष्ये, अथवा अष्ट संमुच्छिम मनुष्ये, ४६. अथवा नवमुच्छिम मनुष्य अथवा दश समुच्छिम मनुष्ये, ४७. तथा संखेज संमुच्छिम मनुष्ये, इम इग्यारं विकल्प करिने संख्याता गर्भे । गर्भेज में संसेज ॥ संख्याता गर्भेज । गभिज में संसेज ॥ संख्याता गर्भेज । गर्भेज में संखेज ।। संख्याता गर्भेज गर्भेज में संलेज ।। गर्भेज में संखेज || भंग इग्यार भगेज || 1 वा० - इहां संख्यात जीव मनुष्य में ऊपजै तेहनां नारकी नीं पर इग्यारं विकल्प का | अ असंख्यात पद नै विषे पूर्वे नारकी ने विषे बारे विकल्प ह्या । अने इहां मनुष्य नै विषे असंख्याता ऊपजै तेहनां वलि इग्यारे ईज विकल्प हुवै । जे भणी जो समुच्छिम मनुष्य नै गर्भेज मनुष्य ए बिहु ने विषे असंख्याता ऊपजै, जदि बारमों विकल्प हुवै ते इम नहीं जे संमुच्छिम मनुष्य ने विषे असंख्याता ऊपजै, पिण इहां गर्भेज मनुष्य तो स्वरूप थकी पिण असंख्याता नथी तो तेहने विषे असंख्याता ऊपजै पिण नथी ते भणी असंख्यात पद न विषे इग्यारे विकल्प देखाड़वा ने अर्थों कहे छे४८. हे प्रभु! जीव असंख मनुष्य में जिन कहै सर्व संमुच्छिम मनुष्ये, हि द्विक्संयोगिक ११ विकल्प करि ४९. अथवा असं समुच्छिम मनुष्ये अथवा असं समुच्छिम मनुष्ये, Jain Education International उपजे तेहूनी पृष्छा । ए इकयोगिक इच्छा ॥ ११ भांगा कहै छै - इक गर्न मनु होय । गर्भज मनु में दोय ॥ ५०. एवं जाव असंख संमुच्छिम, मनुष्य विषे अवधार । गर्भज मनुष्य विषे संख्याता, ए विकल्प भंग ग्यार ॥ असंख्याता जीव मनुष्य में ऊपजै तेह्नां विकल्प ११, भांगा ११ १. असंख्याता संमुच्छिम मनुष्य में, १ गर्भेज मनुष्य में ऊपजै । २. असंख्याता संमुच्छिम मनुष्य में, २ गर्भेज मनुष्य में अपने । २१६ भगवती जोड़ ४१. संखेज्जा भंते! मणुस्सा -- पुच्छा । गंगेया ! संमुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गब्भ वक्कंतिथे वा होगा। ४२. अहवा एगे संमुच्छिममणुस्सेसु होज्जा संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा, अहवा दो संमुच्छिममणुस्पेस होग्या संखेन्ना भवनि होगा, ४३-४७ एवं एक्के उस्सरिते जाव अहवा संमुखमण होण्या संखेज्जा गन्भवतिय मस्से होला। ( श० ६ ११० ) ''स्वादिपूर्वक असंख्यातपदे तु पूर्वं द्वादश विकल्पा उक्ता इह पुनरेकादशैव यतो यदि संमूच्छिमेषु गजेषु चासंख्यातत्त्वं स्थात्तदा द्वादशोऽपि विकल्पो भवेत्, न चैवं इह गर्भजमनुष्याणां स्वरूपतोऽप्यसंख्यातानामभावेन तत्प्रवेशन केऽसंख्यातासम्भवाद्, अतोऽसंकल्पा 2 ( वृ० प० ४५३ ) ४८. असंखेज्जा भंते! मणुस्सा - पुच्छा | गंगे! सव्वे वितत्व संमुच्छिममणुस्सेसु होज्जा । ४९. अहवा असंखेज्जा समुच्छिममणुस्सेसु एगे गब्भवक्कतिय गुस्सेसु होज्जा, अवा असंखेज्जा संमुच्छिममस्से दो गव्भवतियमणुस्सेसु होज्जा, ५०. एवं जाव असंखेज्जा संमुच्छिममणुस्सेसु होज्जा संवेशासम्भवतियम होगा। For Private & Personal Use Only ( श ० ९1१११ ) www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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