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________________ सेढीओत्ति विद्याधर- श्रेणि अनें आभियोगिक श्रेणि केतली छ ? चौतीस वेताढ्य छँ । एकेका उपरि बे-बे विद्याधर श्रेणि दो-दो आभियोगिक श्रेणि – इम एकसी तीस श्रेणि - विजयत्ति चक्रवत्ति जीपवा योग्य खंड केतला छँ ? चौतीस छै । हत्ति केतला मोटा द्रह छ ? प्रमुख से उत्तरकुरु देवकुरु मोहि पद्म द्रह प्रमुख छह द्रह छ । दश नीलवंत इम सोलह ग्रह है। नदी तो देखाड़ी है। एह सर्व परिकर नदी नीं संख्या महानदी सहित जाणवी अन्यथा सूत्र विरुद्ध वचन थावं ते भणी महानदी सहित संख्या जाणवी । इहां सर्व संख्या ने विषे बारं अंतर नदी तो परिवार एकेकी जो अठावीस अठावीस हजार नदीनो ग नहीं, जे भणी अंतर नदी ने परिवार जणातो नथी अनं सूत्र मांहि कह्यो . विजय ने बे पासे गंगा सिंधु अथवा रक्ता रक्तवती चउद- चउद हजार ने परिवारे अंतर नदी पासे पई ने सीता सीतोदा पहि जाये । ते वे नदी तो परिवार उपचारपणें समीपपणां मार्ट अपर नदी नां परिवारपणें गण्यं जणाय छँ । जे भणी जेह नदी नो अठावीस हजार नों परिवार छे ते नदी नों मूल प्रवाह पहुलपणे साढ़े बारह योजन छै अनं मुख प्रवाह एक सौ पचीस योजन छँ । अने एह बारह अंतर नदीनों मूल प्रवाह अनं मुख प्रवाह सरीखो एक सौ पचीस पहुलपणे छे जो परिवार हुवे तो मूल प्रवाह अनं मुख प्रवाह सरीखो न हुवै ते भणी इहां सर्व नदी संख्या नै विषे एह बारे अंतर नदी नो परिवार गणुं नहीं अठावीस हजार नो परिवार गिणियै तो जंबूद्वीप नं विषे सर्व नदी संख्या हुवै । यतः सुत्ते अने जो ए बारंगी तो सतर लाख अन बाणुं हजार चउदस लक्खा छप्पण्ण सहस्स जंबूदीवं मिहुति उ । सतर सतस्स लक्खा वाणवई सहस्स सलिलाओ ॥ इहां एह छठो अधिकार थयो । गम्य जाणवू एह अंबूदीप पदार्थ संग्रह वर्णन नामे + हा १३. सेवं भंते ! इम कही नवमें शतक निहाल । प्रथम उद्देशक नों अरथ, आव्यो प्रवर विशाल ॥ नवमशते प्रथमोद्देशकार्थं ॥१॥ : Jain Education International 'सेढीओ' त्ति विद्याधरश्रेणयः आभियोगिक श्रेणयश्च कियन्त्यः ? उच्यते, अष्टषष्टिः प्रत्येकमासां भवन्ति, विजयार्द्ध पर्वतेषु प्रत्येकं द्वयोर्द्वयोर्भावात् एवं च षट्त्रिंशदधिकं श्रेणिशतं भवतीति । 'विजय' ति कियन्ति चक्रतिविजेतव्यानि भूखण्डानि ? उच्यते चतुस्त्रिशत् । 7 'दह' त्ति कियन्तो महाह्रदा: ? उच्यते, पद्मादयः षड् दश च नीलवदादय उत्तरकुरुदेवकुरुमध्यवत्तन इत्येवं षोडश, 'सलिल' त्ति नद्यस्तत्प्रमाणं च दर्शितमेव । ( वृ० प० ४२५, २६) १३. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ For Private & Personal Use Only ( श० 81२ ) श० ६, उ० १. ढाल १६६ ३ www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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