________________
३०. इम गंगा महानदी तणे, प्रवाह माहै हो उतावलो आय ।
पिण तिहां स्खलना पामियै, एहवं कह्य हो पूर्वली पर ताय॥
३१. पाणी तणे आवर्त में, वलि उदग नां हो बिंदुओं में आय ।
ते विणसै-विनाश पामै तिहां, इम कहिवं हो पूर्वली परै ताय ।।
३०. से णं भंते ! गंगाए महान ईए पडिसोयं हब्बमा
गच्छेज्जा? हंता हव्वमागच्छेज्जा। से णं भंते ! तत्थ विणिहायमावज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए विणिहायमावज्जेज्जा, अत्थे
गइए नो विणिहायमावज्जेज्जा । ३१. से णं भंते ! उदगावत्तं वा उदगबिंदुं वा ओगा
हेज्जा ? हंता ओगाहेज्जा । से णं भंते ! तत्थ परियावजजेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए परियावज्जेज्जा, अत्थेगइए नो परियावज्जेज्जा।
(श० ५।१५६) ३२. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअड्ढे समझे सप
एसे ? उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे ? ३३. गोयमा ! अणड्ढे अमझे अपएसे, नो सअड्ढे नो समझे नो सपएसे ।
(श० ५।१६०)
३२. स्यं परमाण अर्द्ध सहित प्रभु ! मध्य सहित छै हो के प्रदेश सहीत ।
अथवा ते अर्द्ध रहीत छै, मध्य रहित छै हो के प्रदेश रहीत ? ३३. जिन कहै अर्द्ध रहीत छ, मध्य रहित छै हो वलि प्रदेश रहीत ।
पिण ते अर्द्ध सहित नहीं, मध्य सहित नहिं हो नहीं प्रदेश सहीत ॥ ३४. नए अर्द्ध रहित परमाणओ, छेद्यो न जावै ते भणी ।
एकला माटै अप्रदेशिक, खंध ते अलगो गिणी॥ ३५. *दुप्रदेशियो खंध प्रभ ! अर्द्ध सहित छै हो मध्य सहित सप्रदेश ।
अथवा अर्द्ध रहित छ, मध्य रहित छै हो अप्रदेशी कहेश ?
३५. दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे कि सअड्ढे समझे सप
एसे ?
उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे ? ३६. गोयमा ! सअड्ढे अमझे सपए से, नो अणड्ढे नो समझे नो अपएसे।
(श० ५।१६१)
३६. जिन कहै अर्द्ध सहित छ, मध्य रहित छै हो सप्रदेशी ताहि ।
पिण ते अर्द्ध रहित नहीं, मध्य सहित नहीं हो अप्रदेशी नांहि ।। ३७. +अर्द्ध सहित बे प्रदेश माटै, मध्य रहित बिच को नहीं।
प्रदेशिया खंध माटै, सप्रदेश कहियै सही। ३८. नहि अर्द्ध रहित अर्थात् इतलै, अर्द्ध सहित विशेष है।
नहिं मध्य सहित अमध्य छै, अप्रदेश नहिं सप्रदेश है। ३६. *पूछा तीन प्रदेशिया खंध नी,
जिन कहै अर्द्ध न हो मध्य सहित सप्रदेश । पिण ते अर्द्ध सहित नहीं,
मध्य रहित नहि हो नहिं वलि अप्रदेश ।। ४०. त्रिप्रदेश माटै अर्द्ध नांही, दोढ़ दोढ़ हुवै नहीं ।
मध्य सहित प्रदेश बिच इक, सप्रदेश खंध ए सही। ४१. अर्द्ध सहित नहिं बीचलो प्रदेश छेदीजै नहीं।
नहि अमध्य अर्थात् समध्य, अप्रदेश नहिं सप्रदेश ही ।। ४२. जिम कह्यो प्रदेशियो खंध, सम प्रदेश तिम जाणवा ।
विषम ते त्रिप्रदेशिया जिम, न्याय हिवड़े आणवा ।।
लय : पूज मोटा भांजे *लय : वीर सुणो मोरी वीनती
३६. तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा।
गोयमा ! अणड्ढे समझे सपएसे, नो सअड्ढे नो अमझे नो अपएसे।
(श० ५११६२)
४२. जहा दुप्पएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा ।
(श० ५/१६३)
श०५, उ०७, ढाल ८९ ६७
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org