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________________ ५७. जस्स णं भंते ! आउयं तस्स नामं? जस्स नाम तस्स आउयं ? ५७. *हे प्रभ! जेहने आयु कर्म छै, तेहनें नाम कहाई? जेहन नाम कर्म छ तेहन, कर्म आउखो थाइं? (हो प्रभुजी ! मया करो महाराज) ५८. जिन कहै जेहन आयु कर्म तसु, नाम कर्म नियमाई । जेहनै नाम छ तेहन आयु, ए पिण निश्चै थाई॥ ५८. गोयमा ! दो वि परोप्परं नियमं । जस्स आउयं तस्स नियमा नाम जस्स नामं तस्स नियमा आउयं इत्यर्थः । (व० प० ४२४) ५६. एवं गोतेण वि समं भाणियव्वं । (श० ८।४६४) ५६. इमहिज जेहन आयु कर्म छै, गोत्र तास नियमाइं। जेहनै गोत्र छै तेहने आयु, ते पिण निश्चै थाइं॥ ६०. हे प्रभ ! जेहन आयु कर्म छै, तेहनै छै अन्तराय । जेहनें अन्तराय कर्म छै तेहने, आयु कर्म कहाय? ६१. जिन कहै जेहन आयु कर्म तसु, अन्तराय भजनाई। जेहने अन्तराय तेहने आयु, निश्चै करिने थाइं॥ ६२. हे प्रभ! जेहन नाम कर्म छै, तेहनें गोत्रज होय । जेहनें गोत्र कर्म छै तेहने, नाम कर्म अवलोय ।। ६३. जिन कहै जेहन नाम कर्म तसु, गोत्र कर्म नियमाई । जेहन गोत्र कर्म छै तेहने, निश्चै नाम कहाई॥ ६०. जस्स णं भंते ! आउयं तस्स अंतराइयं ? जस्स अंतराइयं तस्स आउयं ? ६१. गोयमा ! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउयं नियम अत्थि । (श० ८।४६५) ६२. जस्स णं भंते ! नामं तस्स गोयं जस्स गोयं तस्स नामं? ६३. गोयमा ! दो वि एए परोप्परं नियमा अत्थि । (श० ८।४६६) यस्य नाम तस्य नियमाद् गोत्रं यस्य गोत्रं तस्य नियमान् नाम। (वृ० प० ४२४) ६४. जस्स णं भंते ! नाम तस्स अंतराइयं ? जस्स अंत राइयं तस्स नामं? ६५. गोयमा ! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स नामं नियम अत्थि । (श० ८।४६७) ६६. जस्स णं भंते ! गोयं तस्स अंतराइयं ? जस्स अंतराइयं तस्स गोयं ? ६७. गोयमा ! जस्स गोयं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियम अत्थि । (श० ८।४६८) ६४. हे प्रभु ! जेहनै नाम कर्म छै, तेहनै छै अन्तराय ।। जेहनें अन्तराय कर्म अछ तसू, नाम कर्म कहिवाय? ६५. जिन कहे जेहन नाम कर्म तसु, अन्तराय भजनाइं।। जेहनें अन्तराय कर्म अछै तसु, नाम कर्म नियमाई॥ ६६. हे प्रभ ! जेहनें गोत्र कर्म छै, तेहनै छै अन्तराय । जेहने अन्तराय कर्म छ तेहन, गोत्र कर्म कहिवाय? ६७. जिन कहै जेहनें गोत्र कर्म तसु, अन्तराय भजनाई। ____ जेहन अन्तराय कर्म अछ तसु, गोत्र कर्म नियमाई ॥ सोरठा ६८. पूर्वे कर्म आख्यात, पुद्गलात्मक अछै तिके । ते माट हिव आत, पुद्गल शब्दे जीव नैं। ६९. *जीव प्रभ! स्यपोग्गली पोग्गले ! तब भाखै जिनराय । ____ जीव भणी पोग्गली पिण कहिये, पोग्गल पिण कहिवाय ॥ सोरठा ७०. इन्द्रिय सहित कहीव, जीव भणी कह्यो पोग्गली । पुद्गल संज्ञा जीव, इन्द्रिय रहित जीव छै॥ *लय : आधाकर्मी थानक ६८. अनन्तरं कर्मोक्तं तच्च पुद्गलात्मकमतस्तदधिकारादिदमाह (वृ० प० ४२४) ६६. जीवे णं भंते ! कि पोग्गली ? पोग्गले? गोयमा! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि। (श० ८।४६६) ७०. पुद्गलाः-थोत्रादिरूपा विद्यन्ते यस्यासौ पुद्गली, 'पुग्गले वि' त्ति पुद्गल इति सज्ञा जीवस्य ततस्तद्योगात् पुद्गल इति। (वृ० प० ४२४) श० प, उ०१०, ढा० १६८ ५५१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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