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________________ ६३. देश अष्टम शत दशम उदेशो, ढाल इकसौ छासठमीं आखी । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय जश' संपति राखी ॥ ढाल : १६७ वहा १. चारित्र जीव परिणाम ते पुद्गल नों परिणाम हिव, २. कितले भेदे हे प्रभु ! । पूर्वे आख्या ताम । कहिये अर्थ अमाम ॥ पुद्गल परिणाम जाण ? जिन कहै पंचविध वर्ण गंध, वलि रस फर्श संठाण || ३. कतिविध वर्ण परिणाम प्रभु ! जिन कहै पंच प्रकार काल-वर्ण- परिणाम है, जाव शुक्ल वर्ण सार ॥ ४. एणे आलावे करि, द्विविध पंचविध रस- परिणाम है, फर्श ५. कतिविध प्रभु संठाण है? जिन ! परिमंडल वट्ट स चतुरंस गन्ध - परिणाम | आठविध ताम ॥ कहे पंचविध जाण । आयत संठाण ॥ सोरठा ६. पुद्गल नों अधिकार, आख्यो छै वलि पुद्गल नोंज विचार कहिये ते छै *भंग पुद्गल तणां सांभलो Jain Education International तेहथी । सांभलो ।। (पदं) ७. प्रभु ! पुद्गलास्तिकाय नों, एक प्रदेश परमाणु जी । पुद्गल राशि तेहनों, प्रदेश निरंश अंश जाणु जी ॥ सोरठा ८. इक अणुकादि प्रसंस, पुद्गलराशि तणो तिको । प्रदेश निरंश निरंश अंश, अंश, प्रदेश परमाणू कह्यो ॥ * लय: मम करो काया माया कारमी २४२ भगवती-जोड़ १. अनन्तरं जीवपरिणाम उक्तोऽथ पुद्गलपरिणामाभिधानायाह( वृ० प० ४२० ) २. कविते । पोलपरिणामे पत्ते ? गोयमा पंचविहे पोमालपरिणामे पण्णत्ते तं जहावण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणामे, संठाणपरिणामे । (२०८४६७) ३. यष्णपरिणामेवं भंते! कतिविहे पण्णले ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे । ४. एवं एएवं अभिलावेण गंधपरिणामे दुबिहे, रसपरिणामे पंचविहे, फासपरिणामे अट्ठविहे । (०८४६८) ५. संावपरिणामे णं भंते । कतिविहे पयते ? गोपमा ! पंचविहे पण तं महापरिमंडलापरिणामे जाव आयतसंठाणपरिणामे । (२०६१४६९) यावत्करणाच ठाणपरिणामे तंसमंठाणपरिणामे चउरंससं ठाणपरिणामे' त्ति दृश्यम् ६. पुद्गलाधिकारादिवमाह For Private & Personal Use Only (०१० ४२० ) ( वृ० प० ४२० ) ७. पुद्गलास्तिकायस्य एकाकादि निरंशोऽधा पुद्गलास्तिकायप्रदेशः परमाणुः । प्रदेशो ( वृ० प० ४२१) www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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