________________
सोरठा
कारण
पाप
५५. 'नरकायू नां धार, कारण चिहुं सावज चिहूं जिन आशा बार, पाप प्रकृति है ते ५६. तिरि आयु नां धार ते पिण ए सावज आशा बार ए पिण प्रकृति ५७. तिर्यंच युगलिया जंत, तेह तणो जे पुन्य प्रकृति दीसंत, निश्च जाण वा० - जघन्य आउखा वाला तिर्यंच, मनुष्य उत्कृष्ट कोड़ पूर्व स्थितिक तिर्यच नैं विषे ऊपजतां ए छठा गमा नैं विषे अध्यवसाय माठा कह्या, शतक २४ उदेशे २० में । ते माठा अध्यवसाय थी कोड़ पूर्व तिर्यचाय बांध्यो । इण लेखे ए कोड़ पूर्व स्थिति तिर्यंचायु पाप री प्रकृति छे, अशुभ अध्यवसाय थी बन्ध्यो ते मार्ट । खोटा अध्यवसाय थी पुन्य री प्रकृति बंधे नहीं ।
छै
हुने ते पुन्य प्रकृति री कोइ नैं पाप री प्रकृति
अने को पूर्व अपरं तिथंच युगलियानो भाउ छै ? कै पाप री प्रकृति है ? एहवूं सूत्रे खोल्यो नथी । भ्यास ते पिण निश्च न कहै । अर्ने कोइ ने पुन्य री प्रकृति भ्यासै ते पिण निश्च न कहै । ते पिण कहै - निश्चय केवली जाणै ।
कह्या ।
मणी ॥
कर्म ग्रन्थ मां कर्मा री प्रकृत, पुण्य पाप री प्रकृत तिण मांहे पिण छँ झूठ अनेक, ते पिण विकलां ने इण पाखंड मत
चिहुं
नीं ॥
Jain Education International
।
५८. मनुष्य आयु नां ताहि, बहुलपणे कारण चिहूं। निरवच आज्ञा मांहि पुन्य प्रकृति एते भणी ॥ ५९. असनी मनुष्य नों जोय, आयु पाप प्रकृति अ तेह तणो अवलोय, कथन इहां कीधो नहीं ॥ ६०. देव आयु नां देख, कारण चिहुं निरवद्य चिडं आज्ञा में पेस पुन्य प्रकृति ए ते
आउयो ।
केवली ॥
१. चार गति पुण्य की प्रकृति है या पाप की ? इस सम्बन्ध में कई मान्यताएं हैं । जयाचार्य ने इस सन्दर्भ में स्वतंत्र रूप से लम्बी चौड़ी समीक्षा की है। अपने अभिमत को संवादी प्रमाण से पुष्ट करने के लिए उन्होंने आचार्य भिक्षु द्वारा कृत 'श्रद्धा निर्णय री चोपाई' की दसवीं ढाल से आठ गाथाएं १०।४३-५० उद्धृत की हैं। उनको उसी रूप में यहां दिया जा रहा है
कह्या ।
भनी ।।'
न्यारी ठहराइ । खबर न कांइ ॥ रो निरणो कीजो ॥
तिजंच ने मिनष तणो आउषो, तिण ने कहै छे एकंत पुन । तिण में असनी मनुष्य तणो आउषो, आ तो पाप तणी प्रकृत छ जबुन ॥ पांच स्थावर सुषम अप्रज्यापता छँ, त्यांरा पिण आउषा ने कहै छै पुन । यांरो पिण छै तिजंच रो आउषो, पाप री प्रकृत जाबक जबुन ॥ पांच स्थावर ने वले तीन विकलंद्री, त्यां अप्रज्यापता रो आउषो जबुन । आ पिण पाप री प्रकृत उघाड़ी, सूतर में कठेय न दीसे पुन || इत्यादिक तिनंच से आउदो विविध प्रकार को विनराय स्यां में कैकां रो आउषो पाप री प्रकृत, कैकां रो आउषो दीसे पुन रे मांय ॥ ५२४ भगवती-जोड़
――
For Private & Personal Use Only
वा०सो देव अध्यापकाद्वितीयो जातो जहणेणं अंतोमुहुत्तट्टतीएसु उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु उववज्जेज्जा''। (० ० २४२६७) सो चेव अप्यणा जम्मकालाद्वितीयो जाओ, जहा सणिपचिदियतिरिखखजोविरस
भ०
( भ० श० २४/२७६ )
www.jainelibrary.org