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तीजा यंत्र नां प्रथम कोठा नै विष छ--
तृतीय यंत्र । सर्व-बंध ते सर्व-बंध नों अंतर | देश-बंध ते देश-बंध नों अंतर एकेंद्रियपणे नो- | जघन्य तीन समय ऊणा बे| जघन्य एक समय अधिक एकद्रियपण वलि | खडाग भव, उत्कृष्ट दो हजार | खडाग भव, उत्कृष्ट बे सहस्र एकेंद्रियपणे । सागर संख्याता वर्ष अधिक । सागर संख्याता वर्ष अधिक। पृथ्वी, अप, तेउ, | जघन्य तीन समय ऊणा बे | जघन्य एक समय अधिक वाउ, तीन विक- खडाग भव, उत्कृष्ट वनस्पति- खडाग भव, उत्कृष्ट अनंतो लेंद्री, तिर्यच- | काल-असंख्यात पुद्गल- काल-वनस्पति नों काल । पंचेंद्री, मनुष्य। | परावर्तन । वनस्पति जघन्य तीन समय ऊणा बे | जघन्य एक समय अधिक
खडाग भव, उत्कृष्ट असंख्याता | खंडाग भव, उत्कृष्ट असं
अवप्पिणी उत्सप्पिणी। । ख्याती अवसप्पिणी उत्सप्पिणी। ए औदारिक-शरीर नां देश-बंधका सर्व-बंधका अबंधका में कुण कुण थकी अल्प बहुत्व तुल्य विशेषाधिकचतुर्थ यंत्र सर्वबंधका
| देशबंधका अल्पबहुत्व सर्व थी थोड़ा विसेसाहिया असंख्यात गुणा
ढाल : १५६
१. अथ वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धनिरूपणायाह--
(वृ० प० ४०४)
१. हिव आगल वैक्रिय-तनु-प्रयोग-बंध पिछाण । तास निरूपण नैं अरथ, कहिये जिनवच जाण ॥
___ *श्री जिन एहवो भाख्यो जी। परम प्रीतवंता गोयम नै भिन-भिन दाख्यो जो ॥ (ध्र पदं) . २. वैक्रिय-तन-प्रयोग-बंध प्रभु ! कितै प्रकार कहीजे ?
जिन कहै दोय प्रकार प्ररूप्या, तास भेद इम लीजै ॥ ३. एकेंद्री-वैक्रिय-शरीर-प्रयोग-बंध
कहीजे ॥ वलि पंचेंद्रि-वैक्रिय-शरीर-प्रयोग-बंध लहीजै ॥ ४. जो एकेंद्रिय-वैक्रिय-शरीर, तो स्यं वाऊकायो ?
के अवाऊ-एकेंद्रि-तनु-प्रयोग-बंध कहायो ?
२. वे उब्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा३. एगिदियवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे य पंचेंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य।
(श० ८।३८६) ४. जइ एगिदियवे उब्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्का
इयएगिदियसरीरप्पयोगबंधे ? अवाउक्काइयएगिदियसरीरप्पयोगबंधे ? ५. एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्विय
सरीरभेदो तहा भाणियव्वो।
५. इम एणे आलावे करि जिम, अवगाहण संठाणो ।
वैक्रिय तन नां भेद कह्या तिम, इहां पिण कहिवा जाणो॥
*लय : सतगुरु एहवो भाख्यो जी
श०८, उ०९, ढा० १५६ ५०१
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