SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अने उत्तर में अन्यान्य अनेक कारणां नो अभिधान करे छे, ए किम ? विवक्षित कर्मोदय अ सहकारी कारणरूप गिणाय छै । इण अपेक्षा थीज ते कारणां नां अभिधान किया छै । अन धर्मसी एवं बी, सजोग, सद्द्दवप करिनं प्रमाद प्रत्यय करि, कर्म, जोग, अन आउखा ने आश्रयी ने औदारिक प्रयोग शरीर नाम कर्म नैं उदय करी ए सर्व अपर्याप्त वेलाई जाणवूं । तेणे समय औदारिक शरीर बांधे, पांच क्रिया लागे छे । पांच शरीर बांधतां पांच क्रिया लागें, इस धर्मसी को इत्यर्थ: । १८. एकेंद्री औदारिक तनु प्रयोग-बंध, किण कर्म उदै प्रभु ! होयो ? जिन कहै एवं चैव इमज ए पूरववत अवलोयो ॥ वा० - इहां एकेंद्री सूत्र नैं पूर्व सूत्र सरिखु का तो पिण इहां पुच्छा मेंएगिदियओरालियस रीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? ७ इम एकेंन्द्री को नाम लेइ औदारिक शरीर नीं पूछा कीधी, ते भणी उत्तर में पण एकेंद्री नो नाम कहानिदियो रानिपरीरययोगबंधे इसो कहियो । एकेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग बंध नां अधिकार थकी । इम आगल पिण विचार कहियो । १६. पृथ्वीकाय एकेंद्री ओदारिक-तनु प्रयोग इम लेवू । एवं जाव वनस्पतिकाइया, बे० ते ० चउरिद्रो इम कहेवूं ॥ २०. हे प्रभुजी तिथंच-पंचेंद्री औदारिक तन लेवो प्रयोग बंध किए कर्म उदय करि ? जिन कहै एवं चेवो ॥ २१. हे प्रभु! मनुष्य केंद्री ओदारिक शरीर प्रयोग बंध जाणी । किसा कर्म ने उदय करि ने ? हिव जिन भारखे वाणी ।। २२. वीर्य सजोग सद्द्रव्यपणे करि, प्रमाद- प्रत्यय कहायो । जाय मनुष्य आढलो उदयनत, ते आथवी ने ताह्यो । २३. मनुष्य पंचेंद्री ओदारिक तनु, प्रयोग संपादक जेहो । संपादक उपजावणहारा ते नामकर्म उदय करि एहो । २४. मनुष्य-पंचेंद्रिय ओदारिक-तनु, प्रयोग-बंध इम होयो । तास विशेष अर्थ पूर्व वखाण्यो, तिम इहां पिण अवलोयो || २५. अंक नव्यासी नं देश का ए. इकसी सतावनमीं ढालो। भिक्ख भारोमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय जश' मंगलमालो । Jain Education International शरीरप्रयोगबन्धः कस्य कम्मण उदयेन ? इति पृष्टे दम्याम्यपि कारणान्यभिधीयन्ते त‌द्विवक्षितक मौदयः । ( वृ० प० ३७८ ) १८. एगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? एवं चेव । १९. पुढविक्काइएगिदियओरालियस रीरप्पयोगबंधे एवं चेव, एवं जाव वणस्सइकाइया । एवं बेइंदिया, एवं इंदिया एवं चरिदिया। (०८३७०) २०. तिरिणयचिदिवओरालियस रीरप्पयोगबंधे पं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? एवं चेव । , For Private & Personal Use Only (०८११७१) रप्पयोगवं पं भंते ! २१. मदिरालय कस्स कम्मस्स उदएणं ? २२. गोमा वीरसाए जाव (सं० पा० ) आउयं च पडुच्च २३. मस्तपंचिदियओ रालियस रीरप्पयोगनामकम्मस्स उदां २४. पंचिदियो रातियसरीरययोगबंधे। पमादपच्चया ( ० ८२७२) श०८, उ० ६, ढा० १५७ ४५५ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy