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प्रदेश नों बंध किम हुई, ते देखाड़े छे― च्यार प्रदेश नों ऊपरलो प्रतर, प्यार प्रदेश
नों हेठलो प्रतर, तेहनी स्थापना मांडी ओलखणा । इम पूर्वोक्त प्रकार करिकै आठ प्रदेश रह्या, तेहनों ऊपरलो प्रतर च्यार प्रदेश नों छै । ते ऊपरला प्रतर मांहिला च्यार प्रदेशां मांहिलो मन मानै जिकोइ एक प्रदेश वांछिये । तेहने अन्य तीन प्रदेश नों बंध हुई। ऊपरला प्रतर नां व्यार प्रदेश महिला दोय प्रदेश तो पसवाड़े रह्या तेनुं बंध । अने हेठला प्रतर नां च्यार प्रदेश मांहिलो एक प्रदेश हेठै रह्यो तेहनुं बंध छै । इम ऊपरला प्रतर में प्यार प्रदेश ते एक एक प्रदेश तीन-तीन प्रदेश साथे बंध्या छै। एक एक प्रदेश तो मूलगो अन तेहनें साथे तीन प्रदेश बंध्या एवं च्यार थया । अनें बाकी रह्या च्यार प्रदेश तिके ते प्रदेश साथे न बंध्या एक एक तो ऊपरला प्रतर नों न बंध्यो, खूर्ण रह्यो ते मार्ट । अनैं हेठला प्रतर नां तीन-तीन प्रदेश ते पिण न बंध्या । ए फर्शणा मात्र हुई, पिण ए च्याखं बंध्या नथी । ए प्यार प्रदेश नों ऊपरला प्रतर नों लेखो को इमहिज च्यार प्रदेश नों हेठलूं प्रतर छ । तेहनों लेखो पिण कहै छै – जे हेठला च्यार प्रतर महिला च्यार प्रदेशां मांहिलो मन माने जिको को एक प्रवेश वांछिये तेहनुं तीन-तीन प्रदेश नों बंध हुई । जे हेठला प्रतर नां च्यार प्रदेश महिला जे दोय प्रदेश तो पसवाड़े रह्या,
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तेहनुं बंध अनैं ऊपरला प्रतर नां व्यार प्रदेश महिला जे एक प्रदेश ऊपर रह्यो तेहनुं बंध छै । इम हेठला प्रतर में च्यार प्रदेश ते एक प्रदेश तीन प्रदेश साथे बंध्या छै । एक एक तो हेठला प्रतर नों प्रदेश अनैं तीन-तीन ऊपरला प्रतर नां प्रदेश, एवं च्यार न बंध्या ।
२०. आठ प्रदेश बिना जिके अन्य प्रदेश नं बंध आदि सहित सूत्रे ह्य ू, जिन वच अमल अमंद ॥
वा०—आदि रहित अन्तरहित प्रथम भांगो को अनं बीजो भांगो आदि रहित, अन्तसहित ते इहां न संभवै । जीव नां आठ मध्य प्रदेश नो बंध ते आदि-रहित छै, अपरिवर्तमानपण करी ते बंध नुं अंत-सहितपणुं न ऊपजै ते माटै बीजो भांगो न संभवे । हिवं तीजो भांगो आदि सहित अंत-रहित उदाहरणे करी कहै छै -
२१. आदि सहित अंत-रहित ते
सिद्ध नां जीव प्रदेश
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तसु बंध सादि अनंत है,
चलण अभाव विशेष ॥
२२. देश नव्यासी एक सौ ए पचावनमी ढाल ।
भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय जय' मंगलमाल ॥
*सय सीता सुम्बरी ४०६ भगवती-जोड
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२०. शेषाणां मध्यमाष्टायोज्येषां सादिविपरिवर्तमानत्वात् । ( वृ० प० ३१८ ) वा०-- एतेन प्रथमभङ्ग उदाहृतः, अनादिसपर्यवसित इत्यं तु द्वितीय भङ्ग यह न संभवति, अनादिसंवदानामष्टानां जीवप्रदेशानामपरिवर्त्तमानत्वेन बन्धस्य सपर्यवसितत्वानुपपत्तेरिति अथ तृतीयो । भङ्ग उदयते । ( वृ० प० ३९८ )
२१. सिद्धानां सादिरपवति जीवप्रदेश
वस्थायां संस्थापित प्रदेशानां सिद्धत्वेऽपि चलनाभावादिति । (५०१० ३२८)
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