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२२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सुरिया कि तीयं खेत्तं गच्छंति?
पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति ? अणागयं खेत्तं गच्छंति ? २३. गोयमा ! नो तीयं खेत्तं गच्छंति पडुप्पन्न खेतं
गच्छंति, नो अणागयं खेत्तं गच्छति। (श० ८।३३२)
२४. इह च यदाकाशखण्डमादित्यः स्वतेजसा व्याप्नोति तत् क्षेत्रमुच्यते
(वृ० प० ३६३)
२२. जंबूद्वीप में बे रवि, स्य जावै छै खेत्र अतीत ।
वर्तमान-खेत्रे जावै अछ, अनागत खेत्रे जावै रीत ? २३. श्री जिन भाखै सांभलो, गया क्षेत्र प्रति नहिं जाय । वर्तमान खेत्र प्रति जाय छै, अनागत प्रति जावै नांय ।।
सोरठा २४. जेह खंड आकाश, तेह खंड प्रति जे रवि ।
निज तेजे करि तास, व्याप ते खेत्रज कह्य॥ २५. 'गयो क्षेत्र नहिं जाय, अतीत खेत्र उलंघियो ।
जाय वर्तमान मांय, जावा लागो ते भणी ॥ २६ अनागत जे खेत, ते प्रति पिण जावै नहीं।
उद्योत न करै तेथ, ए पिण वो ते भणी । २७. जावै छै ए जान, वर्तमान वाची शबद ।
ते माटै वर्तमान, क्षेत्र प्रतै जावै रवि ॥ २८. गयो ए शब्द अतीत, जास्य काल अनागते । ए बिहुँ प्रश्न संगोत, पूछा न करी छै इहां'।
(ज० स०) वा०-इहां पाठ में पूछा इम करी-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया कि तीयं खेत्तं गच्छंति ? पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति ? अणागयं खेत्तं गच्छंति ?
इहां गच्छंति ए शब्द वर्तमान काल वाची छ । वर्तमान काल में सूर्य जे खेत्रे जाय तेहनी पूछा करी ते माट गच्छंति पाठ कह्यो। गये काल नीं पूछा हुवै तो गच्छंसु पाठ हुवे, ते इहां नहीं। आगमिया काल नी पूछा में गच्छिस्संति पाठ हुवे, ते पिण इहां नहीं। ते माट गच्छंति ए वर्तमान काल में सूर्य जाय, तेहनींज पूछा करी, जद भगवान वर्तमान नों ज जाब दियो । २६. *जंबूद्वीप में बे रवि, कांइ गया क्षेत्र प्रति ताय ।
अवभासै छै ते सही, कांई थोड़ो उद्योत कराय?
३०. तथा वर्तमान जे खेत्र नै, अवभासै करै अल्प उद्योत ।
अथवा खेत्र अनागत प्रतै, अवभास करै अल्प जोत ? ३१. जिन भाख गया खेत्र में, नहिं अवभासै छै ताहि । __ अवभासै खेत्र वर्तमान में, अनागत अवभासै नांहि ॥ ३२. स्यफर्यो तेजे करी, अवभासै अल्प अद्योत ? ___ के तेजे अणफर्शियो, अवभासै अल्पज जोत ? ३३. जिन भाखै फों थको, अवभासै अल्प उद्योत ।
अणफर्यो अवभास नहीं, जाव नियमा छ दिशि अल्प जोत ।।
२६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया कि तीयं खेत्तं
ओभासंति ?
अवभासयतः ईषदुद्द्योतयतः (वृ०प० ३६३) ३०. पडुप्पन्न खेत्तं ओभासंति? अणागयं खेत्तं
ओभासंति? ३१. गोयमा ? नो तीयं खेत्तं ओभासंति, पड़प्पन्नं खेत्तं ओभासंति नो अणागयं खेत्तं ओभासंति ।
(श० ८।३३३) ३२. तं भंते ! किं पुटुं ओभासंति ? अपुटु ओभासंति ?
३३. गोयमा ! पुट्ठ ओभासंति, नो अपुट्ठ ओभासंति जाव नियमा छद्दिसि
(श० ८।३३४)
*लय : अहो प्रभु चन्द जिनेश्वर
४६८ भगवती-जोड़
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