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७५. देश बयांसी अंक मुं, सौ चउतोसमी ढाल ।
भिक्ख भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' गण गुणमाल ।।
ढाल १३५
दूहा १. आख्या ज्ञान अज्ञान ए, हिव आगल अधिकार ।
ज्ञानी अज्ञानी तणो, कर निरूपण सार || २. जीव दंडक चउवीस जे, वलि गत्यादिक द्वार।
ज्ञान अनैं अज्ञान नी, नियमा भजना सार ।। *जय जश दायक संपति लायक, नायक नाथ निमल नाणी।
देव जिनेंद दिनेंद अमंद, सुधा-रस चंद सरस वाणी ॥ (ध्र पदं) ३. हे प्रभ ! जीवा स्य नाणी छै, के तसु कहिये अज्ञानी ?
जिन कहै जीवा ज्ञानी पिण छै, अज्ञानी पिण पहिछानी॥ ४. जे ज्ञानी ते केइ बे ज्ञानी, केइ एक छै त्रिण ज्ञानी।
केइ चउज्ञानी केइ इक ज्ञानी, हिव एहनों निर्णय जानी ।।
५. बे ज्ञानी ते मति श्रुत ज्ञानी, त्रिण ज्ञानी इहविध जानी। ___मति श्रुत अवधि तथा मति श्रुत मनपज्जव तीजो गुणखानी ॥
१. अनन्तरं ज्ञानान्यज्ञानानि चोक्तानि, अथ ज्ञानिनोऽ
ज्ञानिनश्च निरूपयन्नाह- (वृ०प० ३४५) २. गइइंदिए य काए सुहुमे पज्जत्तर भवत्थे य ।
भवसिद्धिए य सन्नी लद्धी उवओग जोगे य ।।१।। लेसा कसाय वेए आहारे नाणगोयरे काले । अन्तर अप्पाबहुयं च पज्जवा चेह दाराई ।।२।।
(व०प०३४६) ३. जीवा णं भंते ! कि नाणी? अण्णाणी?
गोयमा ! जीवा नाणी वि, अण्णाणी वि। ४. जे नाणी ते अत्यंगतिया दुण्णाणी, अत्थेगतिया तिण्णाणी, अत्थेगतिया चउनाणी, अत्थेगतिया एग
नाणी। ५. जे दुण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी य । जे तिण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, अहवा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी, मणपज्जवनाणी। ६. जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी,
ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी। जे एगनाणी ते नियमा केवलनाणी। ७. जे अण्णाणी ते अत्थेगतिया दुअण्णाणी, अत्थेगतिया
तिअण्णाणी। ८. जे दुअण्णाणी ते मइअण्णाणी, सुयअण्णाणी य । जे तिअण्णाणी ते मइअण्णाणी, सुयअण्णाणी, विभंगनाणी।
(श० ८/१०४) ६. नेरइया णं भंते ! किं नाणी ? अण्णाणी ?
गोयमा! नाणी वि, अण्णाणी वि। १०. जे नाणी ते नियमा तिण्णाणी, तं जहा—आभिणि
बोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी। सम्यग्दृष्टिनारकाणां भवप्रत्ययमवधिज्ञानमस्तीतिकृत्वा ते नियमात् त्रिज्ञानिनः। (वृ० प० ३४५)
६. चउज्ञानी ते मति श्रुत अवधि, अनें मनपज्जव पहिछानी। ___ इक ज्ञानी ते नियमा निश्चै, केवलज्ञानी सुध ध्यानी ।।
७. जे अज्ञानी जीव अछ ते, कितरा इक बे अज्ञानी ?
केइ एक छै तीन अज्ञानी, तसु निरणय आगल जानी ॥ ८. जे बे अज्ञानी छै तेहनें, कहिये मति श्रुत अज्ञानी।
तीन अज्ञानी जेह जीव ते, मति श्रत विभंग विहं जानी ॥
है. प्रभ ! नारक स्यू' ज्ञानी छ ? के नारक छै अज्ञानी ?
जिन कहै नारक ज्ञानी पिण छ, अज्ञानी पिण ते जानी। १०. ज्ञानी ते नियमा त्रिहुं ज्ञानी, मति श्रुत अवधि ज्ञान जानी।
समदृष्टी जे नरके जावै, ए त्रिहुं सहित गमन ठानी।
*लय : चेत चतुर नर कहै तनै सतगुरु
श.८, उ० २, ढा० १३४,१३५ ३४३
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