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७. रायगिहे जाव एवं वदासी
६. नवमों बंध तणों कह्यो, आराधना नों अर्थ ।
उद्देशक दस आखिया, अष्टम शते तदर्थ ।। ७. नगर राजगृह नै विषे, यावत गोतम स्वाम । वीर प्रत वंदन करी, इम बोले शिर नाम ।
*देव जिनेंद्र कहै गोयम नैं । (ध्र पदं) ८. पुदगल हे प्रभु ! कितै प्रकार, आप परूप्या स्वाम जी ?
प्रभू प्रकाशै तीन प्रकार, आख्या पुद्गल आम जी।। ६. भेद प्रथम जे प्रयोग-परिणता, मीसा-परिणता नाम ।
तीजो भेद वीससा-परिणता, कहियै अर्थ तमाम ॥ १०. जीव व्यापारे शरीर आदिपण, करि परिणम्या ताम ।
ते पुदगल नै कहियै गोतम ! प्रयोग-परिणता नाम ।। ११. प्रयोग स्वभाव बिहुं करि परिणता, मीसा-परिणता ताय ।
बीजो भेद अछै पुद्गल नों, हिव कहिये तसु न्याय ।। १२. प्रयोग-परिणाम भणी अणतजतो, स्वभाव करिक दीस ।
अन्य स्वभाव प्रते पहुंचाया, जीव कलेवर मीस ॥ १३. अथवा ऊदारिकादिक नी वर्गणा, पुद्गल छै ते रूप ।
द्रव्य तिकेज स्वभाव करीन, निपजाया छता तद्रूप ॥ . जीव प्रयोगे एकेंद्रियादिक तन, प्रमखपणे पहिछाण । अन्य परिणाम प्रतै पहुंचाडया, ते मीसा-परिणता जाण ।।
८. कतिविहा णं भंते ! पोग्गला पण्णत्ता ?
गोयमा ! तिविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा६. पयोगपरिणया, मीसापरिणया, वीससापरिणया ।
(श० ८।१) १०. 'पओगपरिणय' ति जीवव्यापारेण शरीरादितया परिणताः
(वृ० प० ३२८) ११. 'मीससा-परिणय' त्ति मिश्रकपरिणताःप्रयोगविस्रसाभ्यां परिणताः
(वृ० प० ३२८) १२. प्रयोगपरिणाममत्यजन्तो विस्रसया स्वभावान्तरमा
पादिता मुक्तकडेवरादिरूपाः। (वृ० ५० ३२८) १३. अथवौदारिकादिवर्गणारूपा विस्रसया निष्पादिताः संतः
(वृ० प० ३२८) १४. जीवप्रयोगेणकेन्द्रियादिशरीरप्रभृतिपरिणामान्तरमापा
दितास्ते मिश्रपरिणताः। (वृ० ५० ३२८)
१५. ननुप्रयोगपरिणामोऽप्येवंविध एव ततः क एषां विशेषः ?
(वृ०प० ३२८) १६. सत्यं, किंतु प्रयोगपरिणतेषु विस्रसा सत्यपि न विवक्षिता इति ।
(वृ० प० ३२८)
सोरठा १५. जे प्रयोग-परिणाम, ते पिण पुद्गल इमज छ ।
तो विशेष स्यू ताम, मीसा-पुद्गल नै विषे ? १६. सत्य बात छै एह, प्रयोग-परिणत नै विषे ।।
वीससा छतेपि जेह, वांछा तेहनी नहिं करी॥ १७. मीसा-परिणत माण, द्वितीय भेद पुद्गल तणो । दाख्यो न्याय सुजाण, तृतीय भेद हिव वीससा ॥
परिणता भेद तीसरो, स्वभाव करिनं सोय । __ परिणमिया बादल प्रमुख ते, ए तीनू अवलोय ।।
वा०-इहां धर्मसी कह्यो ते लिखिये छै-अथ पओगसा ते जीवां ग्रह्या जे आठ कर्म, बारह पर्याप्ता-अपर्याप्ता, पांच शरीर, पांच इन्द्री, वर्णादिक पच्चीसए ५५ बोल तथा पन्द्रह योग एवं-७० बोल जीवां ग्रह्या ते पयोगसा पुद्गल कहिये ।
मीसा ते, ७० बोल जोवां मूक्या ते रूप नथी मूक्यो, अनेरे रूप नथी परिणम्या अनै विस्रसाइं स्वभावांतर पहुंचाड़या, एतावता जीव रहित कलेवर मीसा पुद्गल कहिये ।
वीससा ते, ए ७० बोल जीवां मूक्या पछी अनेरे वर्णादिके २५ आभला प्रमुख * लय : कनकमंजरी चतुर विलक्षण
१८. 'वीससापरिणय' त्ति स्वभावपरिणताः ।
(वृ० प० ३२८)
श०८, उ०१ढा० १३० ३०३
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