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________________ ४०. ए पाप अठारै टालतां पहिला तेहने पेख । भद्र मनोज्ञ हुवै नहीं, इन्द्रिय प्रतिकूल देख ॥ परिणम ते अवलोय । भला रूपपणें जोय ॥ ४१. पाप थकी निवत्यों पलै पुन्य कर्म करि परिणमैं ४२. यावत सुखपणै सही, सही, दुक्खपणे वार-वार इम परिणमै सुकृत्य फल ४३. इम निश्चै जीवां तणें, कालोदाई कल्याण शुभ कर्म बंध हुवै, शुभ फल विपाक नहि सुख ५७. कालोदाई अणगार, पाप कर्म पुन्य पूछा कीधी सार, तमु जिन उत्तर २१०] [भगवती जोड़ होय । सोरठा ४४. 'वृत्तिकार कहिवाय, विरमण पाप अठार थी । पुन्य कर्म उपजाय, शुभ रूपादि तेहथी ॥ ४५. यंत्र धर्मसी कीध पुन्य तणां फल नें विधे ओषधि मिश्र प्रसीध, दृष्टांत छे एहवू कह्य ं ॥ ४६. ते माटै ए मर्म, पुन्य कर्म छै जेहनें । आख्यो कल्याण कर्म, न्याय दृष्टि करि देखियै ॥ ४७. पाप-विरमण पाठ, तेह निर्जरा रूप नि करतां पुन्य शुभ जोग स्यू ॥ पंचम समवाये कह्या । हिंसादिक नो वेरमण ॥ ते संजम शुध पालतां । शुभ जोगे करि जाण, पुन्य कर्म बंधे अर्थ ॥ ५०. त्याग कियां विण ताय, पाप अठारै निवर्त्ते । । सुंदर पिण शिव वाट ४८. समवायंग सुसंच, निर्जर ठाणा पंच ४६. पाप तणां पचखाण, तेहथी पुन्य बंधाय, करणी आज्ञा मांहिली ॥ ५१. तिण सू को सुरूप, सुंदर वर्ण कह्यो वलि । कल्याण कर्म तद्रूप, प्रत्यक्ष फल ए पुन्य नां ॥ ५२. से पाप अठार, पाप कर्म बंधे तमु पाप सेवायां धार, पुन्य कर्म बंधे ५३. परिग्रह पंचम पाप, सेव्या सेवायां अनुमोचां संताप, पाप कर्म ५४. परिग्रह नवविध पेख, खेत्त वत्थू आदि दे । दियां गृहस्थ नैं देख, पुन्य किहां थी तेहनै ॥ बंधे Jain Education International होय ॥ अणगार ! सार ॥ ५५. सेवं पाप अठार, करणी आज्ञा बाखी। तेहनैं ? जोवो हिये विचार, पुन्य किम बंधै ५६. टालै पाप अठार, करणी आज्ञा मांहिली । ए शुभ जोग श्रीकार, तेहथी पुन्य बंधे अछे || नहीं ॥ बलि । अर्थ ॥ कर्म नीं । आपियो । ४०. तस्स णं आवाए नो भद्दए भवइ । इन्द्रियप्रतिकूलत्वात् (० ० ३२६) ४१. तओ पच्छा परिणममाणे- परिणममाणे सुरूवत्ताए सुवण्णत्ताए ४२. जाव सुहत्ताए तो दुक्खत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ । ४३. एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा कलागफल विवासंत्ता कज्जति ।। (०७२२६) For Private & Personal Use Only ४८. पंच निज्जरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणाइवायाओ वेरमणं......... (सगवाओ २६) www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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