SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४. आदेशकारी पुरुष नैं, बोलावी कहै वाय। शीघ्र तुम्हे देवानप्रिया ! जेज करो मति काय ॥ १५. रथ चउघंट सहीत नैं, अश्व जोतरी जाण । रथ सामग्री संकलन करी, सज करिनै तुम आण ।। १४. कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी___खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! १५. चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेह, 'जुत्तामेव' त्ति युक्तमेव रथसामग्रयेति । (वृ०प०३२२) १७. हय-गय-रह-पवर जाव [सं० पा०] सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । (श० ७.१९४) १८. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता । सोरठा १६. जाव शब्द अवदात, पाठ तिके वाचनांतरे । दीसै छै साख्यात, वृत्तिकार इहविध कही। १७. *हय गय रथ यावत सझी, आज्ञा म्हारी एह । पाछी स्पो आणन, कारज सर्व करेह ।। १८. कोट बिक तिण अवसरे, वरुण तणो तिणवार । जाव विनय कर जोड़न, वचन कियो अंगीकार ।। १६. शीघ्र करे सझै रथ भणी, छत्र ध्वजा करि सहीत । जावत स्थापै आणने, प्रवर रथ सुप्रतीत ॥ २०. इहां जाव शब्दे पाठ छै ए, घंट सहित बखाणिय । पताका मोटी ध्वजा, तिण सहित रथ पहिछाणियै ।। २१. वलि प्रवर तोरण तिण करी, जे सहित रथ शोभावियै। रव नंदिघोष सहोत द्वादश, तूर्यध्वनि जन चावियै ।। २२. लघु घंटिका तेणे करी, जे सहित ही सुंदर कियो। वर हेमजाले करी रथ पर्यंत चिहुं दिशि वींटियो ।। १९. खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेंति, २०. यावत्करणादिदं दृश्य-सघंटे सपडागं (वृ० ५० ३२२) २१. सतोरणवरं सणंदिघोसं (वृ० प० ३२२) भंभा मउगमद्दलकडंब रुत्थिरि हुडुक्कू कंसालो। "काहलतिलिमावंसो संखो पणवो य वारसमो""। २२. 'सकिंकिणीहेमजालपेरंतपरिक्खित्तं' सकिङ्किणी केन-क्षुद्रधण्टिकायुक्तेन हेमजालेन पर्यन्तेषु परिक्षिप्तो यः सः। (वृ० प० ३२२) १. जयाचार्य ने प्रस्तुत ढाल की २१वीं गाथा में बारह प्रकार की वाद्य ध्वनि का संकेत देकर नीचे एक गाथा उद्धृत की है। किन्तु वह किस ग्रन्थ से ली गई है, इस सम्बन्ध में कोई निर्देश नहीं किया। भगवती के इस शतक की वृत्ति में उसका कोई उल्लेख नहीं है । नौवें शतक की टीका पत्र ४७६ में कुछ वाद्यों का उल्लेख है, पर उनका इस गाथा के साथ पूरा मेल नहीं होता है। बृहत्कल्पभाष्य की वृत्ति में बारह प्रकार के वाद्यों का उल्लेख है। किन्तु जयाचार्य द्वारा उल्लिखित गाथा में और उस गाथा में थोड़ा अन्तर है। इसलिए हमने मूल गाथा को 'जोड़' की गाथा के सामने उद्धृत किया है। बृहत्कल्प-वृत्ति में प्राप्त गाथा इस प्रकार हैभंभा मुकुंदमद्दल, कडंबझल्लरिहुडुक्ककंसाला । काहलत लिमासो, पणवो संखो य बारसमो।। (सनियुक्तिभाष्यवृत्तिके बृहत्कल्पसूत्रे पृ० १२) *लय : तपसी में गुण अति घणां लिय : पूज मोटा भांजे टोटा २८४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy