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________________ ८६. जाव ऋतु लग जाणवा, तीनूं काल ना एह । भणवा तोस आलावगा, इक इक ना दस जेह ॥ ८७. दक्षिण नें उत्तर विषे, दिन हुवै मुहूर्त्त अठार | तीन मुहूर्त दिन पाछिले, विदेह प्रकाश तिवार ।। ८८ ते वेला थी विदेह में कहिये दिवस जिवार मुहूर्त्त तीन पर्छ इहां, कहियै रात्रि १. ते रात्रि बारे मुहूर्त नो पहला मुहुर्त एवं पनरै मुहूर्त्त थया, महाविदेह में ६०. शेष तीन मुहूर्त जोइये, तेहनों निसुणो तीन मुहूर्त पर्छ दक्षिण उत्तरे दिन ऊ ११. पुरला तोन मुहूर्त लगे, महाविदेह रे दिवस प्रकाश रहे अर्थ विमल विचारो १२. पन नेत्रि महूर्त नो अष्टादश इम लीह । उत्कृष्टो दिन विदेह में एम का धर्मसोह || ६३. महाविदेह खेत्र थकी, भरत एरवत मांय । परं मुहूर्त पहिला तदा वर्ष लागतो जणाय ।। ६४. समय नाम इहां आखियो, तेहनों छै इम न्याय । कितलाइक मुहूर्त पहर में समय कहोजे ताय ॥ ५. इम दक्षिण उत्तर विषे, पूरव पश्चिम तास । घट वृद्धि दिन निशि मुहूर्त्त नीं, जथाजोग सहु मास ।। ९६. सर्वाभ्यंतर मंडल थकी, बाह्य मंडल रवि जाय । दिन घटतो जावं तदा रात्रि बुद्धि ताय ॥ १७. वाहिरला मंडल थकी, रवि अभ्यंतर आय । मंडल मंडल दिन बृद्धि, रात्रि घटती जाय ।। ६८. सर्वाभ्यंतर मंडले, मंडले, पूनम जसाठी पेख । 2 सर्व बाह्य पोसी पूनमें नय ववहारे देख ॥ ६६. पंच वर्ष ना युग मध्ये, पोस आषाढ को एक । तेहनी पूनम दिने, जघन्य उत्कृष्ट दिन देख ॥ १००. कर्क संक्रांति प्रथम दिने, सर्वाभ्यंतर भाण । तिवार ।। तोन । लीन ।। Jain Education International न्याय । ताय ।। मांय । न्याय ।। अष्टादश मुहूर्त्त तणो, दिवस तदा पहिछाण ॥ १०१. मकर संक्रांति प्रथम दिने, सर्व बाह्य मंडल भाण । द्वादश महतो हुवे दिवस तदा पहिचाण । १०२. देश अंक एकावन तगं प्यार सितरमी डाल भिक्षु भारीमाल ऋषराय थी, 'जय जय' मंगलमाल ॥ ८६. जाव उऊए। एवं तिण्णि वि । एएसि तीसं आलावगा भाणियव्वा । ( ० २०१६) For Private & Personal Use Only श०५, उ० १, ढाल ७४ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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