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________________ ७. इण प्रकार करिनें सही, कर्म रहित नैं देख | शिव-गति प्रति अभ्युपगमन, हिव विस्तार विशेख | वा०-हानि करी, नीरागण करी गति-परिणाम करो. बंध में छेद करी, निरंधणपण करी, पूर्वप्रयोगे करो - ए छह प्रकारे करी अकर्म नैं शिवगति अंगीकार कीजिये । इम प्रभु कह्यो । तिवारै गोतम निस्संग, नीराम, गति परिणाम ए तीन प्रश्न वली पूछे "आ तो घांरी वाण लगे हो प्रभु ! प्यारी, थांरी सूरत री बलिहारी । आ तो पांरी बाग लगे हो प्रभु ! प्यारी (ध्रुपदं ) ८. हे भगवंत ! निस्संगपणे करी, कर्म-मल दूर निवारी । निरंगणयाए नीरागपूर्ण करी, मोह कर्म में टारी ॥ ६. गइ - परिणाम ते गति नैं स्वभावे, तुंबडी नी परिधारी । कर्म रहित नैं हे प्रभ ! शिव-गति किम कीजिये अंगीकारी ? १० श्री जिन भाखे यथादृष्टति कोइक पुरुष तिवारी । सूको तूंबडी छिद्र रहित ते उत्तम अधिक उदारी ॥ (आ तो जिन वाण सदा जयकारी) अनुक्रम परिक्रमकारी । छिन मूल कुस धारी ॥ तुंबो, लेप मट्टी अठ कारी । इक इक लेग दे तड़के सुकाव, इम अठ लेप प्रकारी ॥ J ११. वायु प्रमुख करिने न हाणो दर्भ ते मूल सहित दाभे करि १२. ते डाभ कुसे करि वीं ॥ १३. सूकां छतां ते तुम्ब प्रत हिव, उदग अथाग मझारी । जेह उदक तिरियो नहिं जावै, पुरुष थी ऊंडो अपारी ॥ १४. तेह उदक में प्रक्षेप तुंबो, सुन गोतम गणधारी । ! जेह तुंबडो अष्ट माटी नैं, लेप करी तिवारी || करि, भारियताए १५. गुरुयलाए विस्तीर्णपर्ण भारी। गुरुसंभारियताए तणों अर्थ उभयवर्ष अधिकारी ॥ १६. उदक तणां तल प्रति छांडी नैं, अधो धरणि तल धारी । भूमि विषे रहे तेह तुंबडी? इम प्रभु पू तिवारी ॥ १७. हां भगवंत ! रहे कहे गोवम तब बोल्पा जगतारी । हिव ते तंब अठ लेप माटी नां, क्षय वये थके तिवारी || १८. पृथ्वी तणां तल प्रति छांडी नें उदक ऊपर रहे धारी । इम जिन पूछे गोतम बोले हां प्रभु! रहे तिवारी ॥ १६. वीर कहै तब इम निश्च करि, सुण गोयम ! सुखकारी । निस्संगपणे निरागपणं करि गति-परिणाम विचारी ॥ , * लय आवत मेरी गलियन में गिरधारी २१२ भगव Jain Education International ७. अकम्मस्स गती पण्णायति । (०७१११) ८. कण्णं भंते! निस्संगयाए, निरंगणयाए, ६. गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पण्णायति ? १०. से जहानामए केइ पुरिसे सुकं तु निच्छ ११, १२. निरुवर्य आणुपुवीए परिकम्मेमाणे- परिकम्मेमाणे दमेहिकुमेहिता अहि मट्टिया पित्ताति 'निर'ति यावाद्यनुपहतं दम्भेहि यत्ति दर्भः समूलैः 'कुसेहि य' त्ति कुश: - दर्भेरेव छिन्नमूलैः ( वृ० प० २१० ) १३. मूर्ति-भूति मुक्कं समापं अत्यामतारमपोरिसिसि १४. उदगंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! से तुंबे तेसि अहं मट्टियावाणं । १५. गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए १६. समितिवसा आहे परणितलपट्टाणे भवइ ? १७. हंता भवइ । आहे गं से तुंबे तेस बहुमाया परि १८. धरणितलमतिवइत्ता उप्पि सलिलतलपट्टाणे भवइ ? हंता भवइ । १६. एवं खलु गोयमा ! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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