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१८. जीव प्रभु! मारणांतिक नामे, समुद्धात करि सोय चउसठ लक्ष आवास असुर नां, कोइक आवासे जोय || १९. ऊपजवा जोग तिहां ऊपजी नं, तिहां प्रभु ! करें आहार ? नरक तभी परे एपिr भगवो यावत पणियकुमार ॥
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२०. जीव प्रभु! मारणांतिक नामे, समुद्घात करि सोय । ऊपजवा जोग पृथ्वीकाय में जीव तिको अवलोय ॥ २१. लाख असंस आवास पृथ्वी नां एक आवासे स्थान | पृथ्वीकायपणे तिहां ऊपजे ? जीव तिको भगवान! २२. मेरू थी पूर्व किती दूर जावे ? ए गमन आश्रयी कथित्त । केतली दूर जईने रहे थे ? ए अवस्थान आश्रित ॥
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२३. जिन कहे लोक ने अंत जाये ते लोक अंत रहे ताय । ते प्रभु! तिहां गयो आहार छ, परिणामैं तनु निपजाय ?
२४. जिन कहे वहां रह्यो को कोइक, आहार करे सोय । खल रसपणे आहार परिणमावै तन निपजावै जोय || २५. कोइक तेह स्थानक घी बली ने तिहां निज तन में आय। दूजी वार मारणांतिक नामे समुधाते मरे ताय ॥
२६. मेरू पर्वत यो पूर्व दिशि में आंगुल असंलेज भाग | अथवा संख्यातमां भाग विषे जे अथवा वालाग्रे माग ॥
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२७. अथवा पृथक वालाग्र विषे जे, इम लीख जूं जव देख । अंगुल जावत जोजन कोड़ी, तिहां जई सुविशेख ॥ २५. जाव शब्दे हत रयणी कुक्षि धनुष कोश जोजन | जोजन - सय वलि जोजन - सहस्रज, लक्ष-जोजन इति मन्न ॥
२६. जाय शब्द में
ए सह आख्या, तेह इह पद जोड़ । कोड़ जोजन नैं अंतर जई नैं, जोजन कोड़ाकोड़ || ३०. मेरू थी जोजन सहस्र संख्याता, जोजन असंत हजार । अथवा लोक में अंत जई नं उत्पत्ति-स्थान ए धार ॥
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१७० भगवती बोह
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१८,१६. जीवे णं भंते ! मारणंतियस मुग्धाएणं समोहए, समोहणिता जे मविए पढसीए असुरकुमारावास सहस्से अययरंस असुरकुमारावासंसि असुरकुमारत्ताए उववज्जित्तए, जहा नेरइया तहा भाणियव्वा जावयणियकुमारा। (०६।१२३) २०,२१. जी भंते! मारतियसमुग्याएणं समोहर, समहति जे भनिए असंखेज्जेसु पुढविकाइदावास ससहस्से अव्यवरंसि पुढवीकाइयावासंसि पुढी काइयत्ताए उज्जतए,
२२. से णं भंते! मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं केवइयं गच्छेया ? केवढा?
कियद्दूरं गच्छेद् ? गमनमाश्रित्य .... कियद्दूरं प्राप्नुयात् ? अवस्थानमाश्रित्व,
( वृ० प० २७३, २७४ ) २२. गोमालो मालोयंत पाढा । (०६१२४)
से णं भंते ! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा ? परिणामेज्ज वा ? सरीरं वा बंधेज्जा ?
२४. गोमा ! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा;
२५. अरगति तो परिनियत्तद पडिनियतिता इमा गच्छद, दो पि भारतिय समुन्याएवं समोहाइ समोहमित्ता
२६. मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तं वा, संखेज्जइभागमेत्तं वा, वालग्गं वा,
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२७. वालग्ग पुत्तं वा एवं लिक्ख जूय- जव-अंगुल जाव जोयणकोडि वा
वा
२०. यावत्करणादिदं दृश्यं विहरिथ वा कुच्छि वा धणुं वा कोसं वा जोयणं वा जोयणसयं वा जोयणसहस्सं वा जोयणसयसहस्सं वा ।
( वृ० प० २७४)
२६. जोयणकोड| कोडि वा
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३०. संखेज्जेसु वा असंखेज्जेसु वा जोयणसहस्सेसु, लोग ते
वा,
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