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________________ ८. पूर्व दिश नीं अभ्यंतरा जे, कृष्णराजी छै जेहो । दक्षिण बारली कृष्णराजी प्रति, फर्शी जिन वच एहो ॥ ६. दक्षिण दिश नी अभ्यंतरा जे, कृष्णराजी कहिवाई | पश्चिम बारली कृष्णराजी प्रति, फर्शी वाण सुहाई ॥ १०. पश्चिम दिश नीं अभ्यंतरा जं, कृष्णराजी जे जानी । उत्तर बारली कृष्णराजी प्रति, फर्शी अति आछो ॥ ११. उत्तर दिश नीं अभ्यंतरा जे, कृष्णराजी जे काली । पूर्व बारली कृष्णराजी प्रति फर्सी एह विशाली ॥ १२. दोय पूर्व पश्चिम नीं बारली, कृष्णराजी षट खूणां । दोय उत्तर दक्षिण नी वारली, त्रिसूणी नहि ऊणां ॥ J १२. दोय पूर्व पश्चिम नीं माहिली, कृष्णराजी चउरंसा | दोय उत्तर दक्षिण नीं माहिली, उणी सुप्रसंसा ॥ १४ पूर्व अपर छह अंस, अभ्यंतर चउरंस, १५. कृष्णराजी प्रभु! केतली लांबी किती विस्तंभ विस्तारो ? परिधिपणें करि केतली प्रभुजी ! हिव जिन उत्तर सारो ॥ १६. जिन कहे जोजन सहस्र असंख्या लांबपणे सुविचारों | संख्याता सहस्र जोजन विक्लंभ . परिधि जोजन असंख हजारो ॥ , सोरठा तंस उत्तर दक्षिण बज्झा । सर्व कृष्णराजी कही ॥ १७. कृष्णराजी प्रभु ! केतली मोटी ? जिन कहै जंबू जाय इक पक्ष लग सुर जाये, पूर्व गति करि न पावे। १८. पार लहै कोइ कृष्णराजी नं, कोइ न पार एहवी मोटी कृष्णराजी छै, सुण गोतम हरसावै ॥ १६. कृष्णराजी में विषे प्रभुजी पर ने आकारे अगारो । घर में आकारे हाट तिहां है? जिन कहै नहीं लिगारो ॥ २०. कृष्णराजी ने विषे प्रभुजी ! ग्राम तथा सुविशेषो ? जिन कहै अर्थ समर्थ नहीं ए, वलि गोयम पूछेसो ॥ *लय एही । तेही ॥ २१. कृष्णराज विषे हे प्रभुजी मेष उदार प्रधानो । नैं ! संसेयंति समृच्छति पूर्ववत वलि घन वरसे जानो ।। बलियां स्यूं केम लागंता ए Jain Education International 1 ८. पुरविमन्तरा कहराती दाहिणबाहिरं कन्हराति पुट्ठा, १. दाहिणमंत कराती पच्चरिथम बाहिर कम्हराति पुट्ठा, १०. पचतिमन्तरा कव्हराती उत्तर बाहिर कम्हराति पुट्ठा, ११. उत्तरमंतरा कहराती पुरस्थम बाहिर राति पुट्ठा । १२. दो पुरत्थिम-पच्चत्थिमाओ बाहिराओ कण्हरातीओ छलंसाओ, दो उत्तर दाहिणाओ बाहिराओ कण्हरातीओ तंसाओ, १३. दो पुरस्थम-पच्चरिमाओ अन्तराओ कव्हरातीओ उत्तरदाहिणातराभो कण्ह ( श० ६ / ६० ) रातीओ चउरंसाओ । १४. पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा । अब्भंतर चउरंसा, सव्वा वि य कण्हरातीओ || (२०६१० संग्रहणी -गाहा ) १५. कण्हरातीओ णं भंते! केवतियं आयामेणं ? केवतियं विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ ? १६. गोपमा असंखेन्जाई जोयणसहस्साई आवामेणं, संखेज्जाई जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ । ( श० ६ ९१ ) १७. कण्हरातीओ णं भंते! केमहालियाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा! अयं जंबुद्दीवे दीने जाव (सं० पा० ) अद्धमासं वीएा । १५. अगए कम्हराति बीईएडा अत्येगइएक राति णो वीईवएज्जा, एमहालियाओ णं गोयमा ! कण्हरातीओ पण्णत्ताओ । (२० ६/१२) कन्हराती नेहावा? हावणा इवा ? को इणट्ठे सम (२०६२९३) २०. अस्थि णं भंते! कण्हरातीसु गामा इ वा ? जाव सण्णिवेसा इ वा ? १९. गोइ समट्ठे । २१. अस्थि णं भंते! कण्हरातीसु ओराला यंति ? सम्मुच्छंति ? वासं वासंति ? For Private & Personal Use Only (स० ६०२४) बलाया संसे श० ६, ३०५, ढा० १०४ १६३ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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