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________________ मूलपाठ को शुद्ध करना, भगवती सूत्र के पाठ और उसकी वृत्ति के साथ उसे तुलनात्मक प्रस्तुति देना, जोड़ में प्रयुक्त अन्य आगमों तथा ग्रन्थों के प्रमाण खोजना आदि अनेक पड़ावों को पार करने के बाद ही इस यात्रा को विराम मिलता है। प्रस्तुत खण्ड का सम्पादन इसके प्रथम खण्ड की भांति श्रद्धास्पद आचार्यवर की अमृतमयी सन्निधि में बैठकर किया गया है । आपकी प्रत्यक्ष उपस्थिति के बिना इसका सम्पादन कठिन ही नहीं, असंभव था। यात्रा, जनसम्पर्क आदि व्यस्तताओं के बावजूद आपने इस काम के लिए अपने अमूल्य समय दिया। इसी से इस ग्रन्थ की गरिमा बहुगुणित हो जाती है। सम्पादन कार्य में साध्वी जिनप्रभाजी और कल्पलताजी का योग बराबर मिलता रहा । मुनि हीरालालजी का सहयोग तो अविस्मरणीय है। जहां कहीं आगम ग्रन्थों के प्रमाण खोजने होते मुनिश्री बहुत कम समय में पूरे मनोयोग से हमारा काम सरल बना देते। "भगवती की जोड़" की हस्तलिखित प्रतियां हमारे धर्मसंघ के भण्डार में है। उसे धारण करने का काम “जैन विश्व भारती" द्वारा कराया जा चुका है । सम्पादन के इस क्रम में "जोड़" के समानान्तर मूलपाठ और वृत्ति को धारने का काम मुमुक्षु बहिनों ने किया। प्रूफ निरीक्षण में अधिक समय और श्रम साध्वी जिनप्रभाजी का लगा। उनके साथ अन्य कई साध्वियों ने निष्ठा से काम किया। जैन विश्व भारती के मुद्रण विभाग ने भी इस दुरूह काम को पूरा करने में ईमानदारी पूर्वक श्रम किया। मेटर कम्पोज हो जाने के बाद पाण्डुलिपि में किए गए परिवर्तन का संशोधन काफी श्रमसाध्य होता है। पर प्रेस की ओर से कभी यह शिकायत ही नहीं आई कि पाण्डुलिपि में परिवर्तन क्यों किया जाता है। भगवती की जोड़" के सम्पादन में मेरा नाम जोड़ा गया, यह मेरा सौभाग्य है। वास्तविकता यह है कि कोई भी अकेला व्यक्ति इस गुरुतर कार्य को संपादित नहीं कर सकता । श्रद्धास्पद आचार्यप्रवर का मंगल आशीर्वाद, सफल मार्गदर्शन और सतत सान्निध्य, युवाचार्य श्री का दिशा-निर्देश तथा सहकर्मी साधु-साध्वियों की निष्ठा और श्रमशीलता-इन सबके समुचित योग से यह काम हो पाया है । अभी तक दो ही खण्डों का काम हुआ है । जितना काम हुआ है, करणीय उससे बहुत अधिक है। शेष कार्य को पूर्णता तक पहुंचाने के लिए हमें अपनी गति को तीव्रता देनी होगी। श्रद्धास्पद गुरुदेव की अमृतमयी सन्निधि "भगवती की जोड़" से जुड़े हुए प्रत्येक व्यक्ति में नई ऊर्जा का संप्रेषण करे और हम सब मिलकर इस काम को आगे बढ़ाएं, यह अपेक्षा है। सम्पूर्ण "भगवती जोड़" को एक ही शैली में सम्पादित करने का गुरुदेव का जो सपना है, उसे आकार देने में हम किंचित् भी निमित्त बन सकें तो हमारे जन्म की सार्थकता होगी। १५ अगस्त, १९८६ लाडनूं साध्वी प्रमुखा कनकप्रमा Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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