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५५. जीवपदे एकेन्द्रियपदे च 'सपएसा य अप्पएसा ये'
त्येवंरूप एक एव भङ्गकः । (वृ० प० २६२) ५६. बहूनां विग्रहगत्यापन्नानां सप्रदेशानामप्रदेशानां च लाभात् ।
(वृ० प० २६२)
५८. नारकादीनां द्वीन्द्रियादीनां च स्तोकतराणामुत्पादः,
तत्र चैकद्वयादीनामनाहारकाणां भावात् षड्भङ्गिकासम्भवः ।
(वृ० प० २६२)
६०. तत्र द्वौ बहुवचनान्तौ अन्ये तु चत्वार एकवचनबहुवचनसंयोगात् ।
(वृ० प० २६२) ६१. सपदेसा वा।
६२. अपदेसा वा।
६३. अहवा सपदेसे य अपदेसे य ।
५५. जीव एकेद्रिय बिहं पदे, सप्रदेश बहु हाय ।
अप्रदेश पिण बहु हुवै, इम इ. भंगो जोय ।। ५६. ए बहु विग्रहगति रह्या, प्रथम समय अप्रदेश ।
सप्रदेश अन्य समय में, लाभ बहु सुविशेष ।। ५७. ते माट बहु वच कह्या, अनाहारका ताय ।
जीव एकेंद्रिय वर्ज नै, षट भंगा कहिवाय॥ ५८. उगणीस दंडक नै विषे, अल्प ऊपजै आय ।
इक बे आदि अनाहारका, त्यां षट भंगा पाय॥ ५६. ते माटै सूत्र कह्या, अनाहारका मांय ।
जीव एकेंद्रिय वर्ज नै, षट भंगा कहिवाय ।। ६०. बे भंग बहु वचनांत छै, इकसंजोगिक होय ।
वलि च्यार भांगा तिके, द्विकसंयोगिका जोय ।। ६१. *सप्रदेशा बहु वचन थी, ए धर भंगो होय ।
अन्य समय बर्ते बहु, प्रथम समय नहिं कोय ।। ६२. अप्रदेशा बहु वचन थी. दूजो भांगो जोय ।
प्रथम समय नां लाधे घणां, अन्य समय नां न होय ॥ ६३. सपदेसे अपदेसे तथा, तीजो भांगो देख ।
प्रथम समय इक जीव छै, अन्य समय वर्ते एक । ६४. सपदेसे अपदेसा तथा, चउथो भांगो कहीव ।
अन्य समय इक वर्त्ततो, प्रथम समय बहु जीव ।। ६५. सपदेसा अपदेसे तथा, पंचम भंगो जोय ।
अन्य समय वत्तै घणां, प्रथम समय इक होय ।। ६६. सपदेसा अपदेशा तथा, छट्ठो भांगो संपेख ।
अन्य समय बहु वर्त्तता, प्रथम समय बहु देख ।। ६७. इम उगणीसज दंडके, अल्प ऊपजै ते मांय ।
हुवै इक बे आदि अनाहारका, तिण षट भंग पाय ।। ६८. केवल एक वचन तणां, भंग दोय नहिं होय । बहु वच नां अधिकार थी, वृत्ति विषे इम जोय ।।
वा० जिम पहिले भांगे सप्रदेशी घणां अनै दूजे भांगे अप्रदेशी घणां, ए बे भांगा कह्या । तिम तीजे भांगे सप्रदेशी एक अनै चोथे भांगे अप्रदेशी एक, ए भांगा अनाहारक एकसंजोगिक एक वचनांत किम न हुई? अनाहारक बहु जीव नां अधिकारपणां थकी। एटले अनाहारक एक जीव नो
अधिकार नथी, तिण सूं एक वचनांत भांगो कह्यो नथी। ६६. सिद्धां में तीन भांगा अछ, तीन भांगां रै माय ।
बहु वचने कर सूत्र में, भांगा तीन कहाय ॥ *लय : प्रभवो मन माहै चितवै
६४. अहवा सपदेसे य अपदेसा य ।
६५. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ।
६६. अहवा सपदेसा य अपदेसा य ।
६८. केवलैकवचनभङ्गकाविह न स्तः, पृथक्त्वस्याधिकृतत्वादिति ।
(वृ० प० २६२)
६६. सिद्धेहि तियभंगो।
श० ६, उ० ४, ढा० १०१ १३६
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