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________________ १२२. यावत् पुद्गल कवणपणे तसुं, भुज्जो परिणमै धारो। जिन कहै-फर्शद्री बेमात्रा, परिणमै वारंवारो। १२३. शेष विस्तार नरक जिम सगलो, जाव वणस्सइ तासो। नवरं स्थिति में फेर जजइ, बेमानाई उसासो।। १२२. जाव ते णं तेसि पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो-भुज्जो परि णमंति? गोयमा ! फासिदियवेमायत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। १२३. सेसं जहा नेरइयाणं जाव नो अचलियं कम्मं निज्ज रंति। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, नवरं ठिती वष्णे यया जा जस्स, उस्सासो बेमायाए। १२४. बेइंदियाणं ठिई भाणियब्वा, ऊसासो वेमायाए। १२४. वेंद्रि स्थिति धुर अंतमहत, उत्कृष्टी वर्ष बारो। बेमात्राइं उसास लेबै, हिवै आहार अधिकारो॥ १२५. अणाभोग तो लिय निरंतर, आभोगे इम जाणो। असंख समय मैं अंतर्महत्ते, बेमात्राइं पिछाणो ॥ १२६. शेष तिमज यावत् इम कहिवो, अनंत भाग आस्वादै । संग्रहणि-गाहा ना छठा प्रश्न लग, हिवै सातमो साधै ।। १२७. हे भगवंत ! बेइंद्री पुद्गल आहारपणे ग्रहै ज्यां ही। ते स्यं सर्व आहार अथवा सर्व आहारै नांही ?।। १२८. जिन कहै द्विविध आहार बेइंद्रि, लोम आहार प्रक्षेवो। लोम आहार तो सर्व ग्रहै छ, हिव प्रक्षेप कहेवो । १२६. प्रक्षेप आहारपणे पुद्गल ग्रहै तसु, असंख्यातमां भागे। आहारै छै ए पाठ न्याय तसं, विशिष्ट परणमै सागे ।। १३०. अनेक हजार भाग अण फा, अणस्वाद्या बिललावै। अति सूक्ष्म अति स्थल बहु द्रव्या, रसन-फर्श ते नावै ।। १३१. हे प्रभु ! अण आस्वाद्या पुद्गल, वलि अणफा मांह्यो। कण वह अल्प तुल्य विशेषाधिक?, हिव भाखै जिनरायो ।। १३२. सर्व थी थोड़ा केवल रस-इंद्रिय विषय जे नाया। केवल फर्श इंद्रि अणफा , अनंत गुणा अधिकाया।। १२५, १२६. बेइंदियाणं आहारे पुच्छा, गोयमा ! आभोग निव्वत्तिए य अणाभोगनिव्वत्तिए य तहेव । तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए, से णं असंखेज्जसमए अंतोमुहुत्तिए वेमायाए आहारठे समुप्पज्जइ । सेसं तहेव जाव अणंतभागं आसाएंति। १२७-१३०. बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हति ते कि सम्बे आहारेंति, णो सब्वे आहारेंति? गोयमा! बेइंदियाणं दुविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहालोमाहारे पक्खेवाहारे य। जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हति ते सब्वे अपरिसेसिए आहारेति । जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गिण्हंति तेसि णं पोग्गलाणं असंखिज्जइभागं आहारेंति, गाइं च णं भागसहस्साई अणासाइज्जमाणाई अफासिज्जमाणाई विद्धंसमा वज्जति। १३१,१३२. एएसि णं भंते ! पोग्गलाणं अणासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाण य कयरे-कयरे अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा बिसेसाहिया वा? गोयमा ! सब्बत्थोबा पोग्गला अणासा इज्जमाणा, अफासाइज्जमाणा अणंतगुणा। १३३,१३४. बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गला आहारत्ताए गिण्हंति ते णं तेसि पोन्गला की सत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति? गोयमा ! जिभिदियफासिदियवेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। १३५. बे इंदियाणं भंते ! पुवाहारिया पुग्गला परिणया ? तहेव जाव चलियं कम्मं निज्जरेंति । १३६, १३७. तेइंदियचरिदियाणं णाणत्तं ठिईए जाव णेगाई चण भागसहस्साई अणाघाइज्जमाणाई अणासाइज्जमाणाई अफासाइज्जमाणाई विद्धंसमावज्जति । १३३. हे भगवंत ! बेइंद्री पुद्गल, आहारपण ग्रहै जाणी। ते तसं पुदगल कवणपणे जे, बलि-बलि परिणमैं आणी ।। १३४. जिन कहै-रस इंद्री फर्शद्रीपण बेमात्रा पेखो। बलि-बलि परणमैं छै ते पुद्गल, अप्टम प्रश्न उवेखो। १३५. हे भगवंत ! बेइंद्री पुदगल, पूर्व आहारिया परिणया। तिम हिज जाव चलित कर्म निर्जर, सूत्र मध्ये ए थणिया।। १३६. ते इंद्री चरिद्रो नाणत्तं, स्थिति विषै पहिछाणी। यावत् वलि अनेक हजारा भाग आहार ना जाणी ।। १३७. अणगंध्या नै अणआस्वाद्या, वलि अण' फर्या पेखो। पुद्गल द्रव्य विध्वंस हुवै छै, हिव तसं न्याय उवेखो। श०१, उ०१, ढा०४ ६५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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