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प्रकाशकीय
जयाचार्य निर्वाण-शताब्दी समारोह के इस पावन अवसर पर जैन विश्व भारती की ओर से जय वाङ्मय के चतुर्दश ग्रन्थ 'भगवती-जोड़' को जनता के हाथों में सौंपते हुए हमारा हृदय हर्षोत्फुल्ल हो रहा है।
श्रीमज्जयाचार्य का जन्म-नाम जीतमलजी था। आपने अपनी कृतियों में अपना उपनाम 'जय' रखा, इसलिए आप जयाचार्य के नाम से प्रख्यात हुए। आप श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म-संघ के चतुर्थ आचार्य थे।
श्रीमज्जयाचार्य की जन्मभूमि मारवाड़ का रोयट ग्राम था। आपका जन्म सं० १८६० की आश्विन शुक्ला १४ की रात्रिवेला में हुआ था। आप ओसवाल थे। गोत्र से गोलछा थे। आपके पिताश्री का नाम आईदानजी गोलेछा और मातुश्री का नाम कलूजी था। आप तीन भाई थे। दो बड़े भाइयों का नाम सरूपचन्दजी और भीमराजजी था।
____ आपके ज्येष्ठ भ्राता सरूपचन्दजी ने सं०१८६६ की पौष शु०६ के दिन साधु-जीवन ग्रहण किया। आपने उसी वर्ष माघ कृष्णा ७ के दिन प्रव्रज्या ग्रहण की। दूसरे बड़े भाई भीमराजजी की दीक्षा आपके बाद फाल्गुन कृष्णा ११ के दिन सम्पन्न हुई और उसी दिन माता कलूजी ने भी दीक्षा ग्रहण की। इस तरह सं० १८६९ पौष शुक्ला ८ एवं फाल्गुन कृष्णा १२ को पौने दो माह की अवधि में माता सहित तीनों भाई द्वितीय आचार्यश्री भारमलजी के शासन-काल में दीक्षित हुए।
साधु-जीवन ग्रहण करने के समय जयाचार्य नौ वर्ष के थे। दीक्षा के बाद आप शिक्षा के लिए मुनि हेमराजजी को सौंपे गए । वे ही आपके विद्या-गुरु रहे। आगे जाकर आप एक महान् आध्यात्मिक योगी, विश्रुत इतिहास-सर्जक, विचक्षण साहित्य-स्रष्टा एवं सहज प्रतिभा सम्पन्न कवि सिद्ध हुए।
सं० १६०८ माघ कृष्णा १४ के दिन तृतीय आचार्य ऋषिराय का छोटी रावलिया में देहान्त हुआ। आप चतुर्थ आचार्य हुए।
आचार्य ऋषिराय के देवलोक होने का समाचार माघ सु० ८ के दिन बीदासर पहुंचा, जहां युवाचार्य जीतमलजी विराज रहे थे । सं० १६०८ माघ सुदी १५ को प्रातःकाल पुष्य नक्षत्र के समय आप पदासीन हुए
और बड़े हर्ष के साथ पट्टोत्सव मनाया गया। आचार्य ऋषिराय ने ६७ साधुओं एवं १४३ साध्वियों की धरोहर छोड़ी।
आपने श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म-संघ के चतुर्थ आचार्य पद को ३० वर्षों तक सुशोभित किया । आपका निर्वाण सं० १९३८ की भाद्र कृष्णा १२ के दिन जयपुर में हुआ। सं० २०३८ भाद्र कृष्णा ११ के दिन आपको निर्वाण प्राप्त हुए १०० वर्ष पूरे हुए हैं।
जयाचार्य बड़े कुशल संघ-व्यवस्थापक और दूरदर्शी आचार्य थे। आपके आचार्यत्व काल में संघ का बहुविध विकास हुआ।
श्रीमज्जयाचार्य ने अपने जीवन-काल में लगभग ३३ लाख प्रद्य-प्रमाण साहित्य की रचना की। आपकी साहित्यिक रुचि बहुविध थी। तेरापंथ धर्म-संघ के संस्थापक आदि-आचार्य श्रीमद् भिक्षु के बाद आपकी साहित्य-साधना बेजोड़ है । आप महान् तत्त्वज्ञानी थे । जन्मजात कुशल इतिहास-लेखक थे। सजीव
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