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देने से होने वाला कर्मबंध
परित्तकाय - एक से लेकर असंख्य जीवों का आश्रय परित संसार भव-भ्रमण को सीमित कर देना परिती- -सीमित
परिषह - साधना में सहज रूप से प्राप्त होने वाली अनुकूल पैशुन्य — चुगली
और प्रतिकूल परिस्थितियां
पोसह (पोसा) – पौषध, श्रावक का ग्यारहवां व्रत
परिहार- विशुद्ध - विशिष्ट तपस्या प्रधान चारित्र की पोहरसी - काल का एक मान -प्रमाण प्रक्षेप - कवल आहार का एक प्रकार
आराधना करने वाले मुनि
पर्याप्त जिस जन्म में जितनी पर्याप्तियां प्राप्त करनी हों, उन्हें प्राप्त करने वाला जीव
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पर्याप्ति- - जन्म के प्रारम्भ में प्राप्त की जाने वाली पौद्गलिक शक्ति
पर्याय-पदार्थों की विविध अवस्थाएं पर्यायास्तिक नय - ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ एवंभूत ये
चार नय
पल्य (पल्योपम ) – उपमा के द्वारा निर्धारित कालमान पहूलो चौड़ा
पाउसिया — द्वेष भावना - दुष्ट अध्यवसायों से होने वाला कर्मबंध
पाओवगमन - अनशन का एक प्रकार, जिसमें शरीर की सार-संभाल का सर्वथा परिहार होता है।
पाखण्ड परिचय - साध्य से प्रतिकूल दिशागामी
व्यक्तियों
से संपर्क
पूर्वानुपूर्वी - प्रारम्भ में होने वाला क्रम पृथक् ( प्रत्येक ) – दो से नौ तक की संख्या पृथ्वीकाय - मिट्टी के जीव
पेज्ज बंध- राग का बंधन
-सराग तप
पूर्वधर पूर्वो का ज्ञान धारण करने वाला मुनि पूर्व संयम - सराग संयम
४३० भगवती-जोड़
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प्रचला -- वह निद्रा, जो खड़े रहने पर भी आती है प्रतिमाकल्पिक - अभिग्रह विशेष धारण करने वाला मुनि प्रत्यक्ष प्रमाण - किसी माध्यम के बिना होने वाला ज्ञान प्रत्येक बुद्ध - किसी निमित्त विशेष से प्रतिबोध पाने वाला प्रदेश (परदेश) - पदार्थ से सम्बद्ध परमाणु जितना सूक्ष्म विभाग
प्रदेश कर्म -- आत्म- प्रदेशों में जिनका वेदन निश्चित है प्रदेश बंध- आत्मा का कर्मों के साथ एकीभाव
प्रमत्त ( गुणठाण ) - छट्ठा गुणस्थान, जहां पूर्ण संयम होने पर भी प्रमाद रहता है।
प्रमत्त (संजी) छट्ठे गुणस्थान का मुनि
प्रमाण -- यथार्थ ज्ञान
प्रमाणांगुल भगवान् ऋषभ, भरत आदि के अंगुल का
प्रमाण
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पाणाइवाय-- प्राणातिपात प्राण-वियोजन
पाथड़ा नरकभूमियों के मध्यवर्ती प्रस्तर, जहां नारक जीवों
का आवास होता है
पाथा - प्रस्थक, एक पाव पदार्थ मापने का पात्र पाप-हिया, असत्य आदि अवृत्ति या उसके द्वारा होने का ( प्रायुक) — अभिलयशीय, अत्ति
वाला बंधन
पारणा तपस्या का समापन
पिविशुद्धा
पुण्य- शुभ कर्म पुद्गल
पुद्गलास्तिकाय - मूर्त पदार्थ
पुरुष वेद-पुरुष की स्त्री के प्रति अभिलाषा
पुलाक- संयम को असार करने वाला निर्ग्रन्थ
पूर्व-दृष्टिवाद अंग के चौथे विभाग में रहने वाला विशाल
शान, चौदह पूर्व पूर्व तप
प्रमाद
-जागरूकता का अभाव
प्रयोग सामान्य ऋण के रूप में धन देना
प्राणपर्याप्ति की अपेक्षा रखने वाली जीवनी शक्ति
बद्धायु — जीव को अगले भव में जिस गति में उत्पन्न होना है, उसका आयुष्य बांध लेने पर वह बद्धायु कहलाता है।
बन्ध --- कर्म पुद्गलों का आत्मा के साथ सम्बन्ध बलिकर्म - स्नान - काल में होने वाली एक विशेष क्रिया बहुश्रुत -- जघन्यतः नौवें पूर्व की तृतीय वस्तु को तथा उत्कृष्टतः असम्पूर्ण दस पूर्वो को जानने वाला मुनि
बादर - स्थूल
बाल- असंयमी
बाल पंडित - संयमासंयमी, श्रावक बालपंडित वीर्य श्रावक का वीर्य
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