SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४. अर्द्ध - चंद्र संस्थान ते, अच्चिमाली किरण नी श्रेण । १४. अद्धचंदसंठाणसंठिए अच्चिमालिभास रासिवन्नाहे। भास-राशि तेज नां समूह नीं, आभा रे प्रभा सुवर्णण ।। (वृ०-५० १६५) १५. असंख कोडाकोड जोजन तणो, लांबो पहलो जोय । १५. असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं परिधि असंख कोडाकोड जोजन तणी,इहां सुधर्म रे कल्प अवलोय।। असंखेज्जाओ जोषणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं एत्थ णं सोहम्माणं देवाणं । (वृ०-प० १६५, १६६) १६. बत्तीस लक्ष विमाण छै, आख्या तेह विमाण । १६. बत्तीस विमाणावाससयसहस्साई भवन्तीति अक्खाया, सर्व रत्नमय छै अच्छा, यावत् रे प्रतिरूप पिछाण ।। ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूबा । १७. ते सौधर्मज कल्प नै, बह - मध्य देश - भाग। १७. तस्स णं सोहम्मकप्पस्स बहुभज्झदेसभाए। जाव शब्द में एतला, कहिये रे पाठ सुमाग ।। (वृ०-५० १६६) १८. वर विमाण तिहां शक्र नां, कह्या पंच अवतंस । १८. पंच बडेसया पण्णता, तं जहा--असोगवडेंसए, सत्त'अशोक सप्तपर्ण 'चंपक, 'न्य मध्य रे "सुधर्म अवडंस ।। बण्णव.सए, चंपयवडेंसए, च्यवडेंसए, मज्झे सोहम्मवडेंसए। (श० ३।२४६) १६. सुधर्मावतंसक महाविमान नै, पूर्व दिशि रै माय । १६. तस्स णं सोहम्मबडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरथिमे णं सूधर्म-कल्प विषै अछ, जोजन रे असंख उलंघाय ।। सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाई जोयणाई वीइवइत्ता, २०. इहां शक देवंद्र नां, देवराजा नां जाण ।। २०. एत्थ णं सक्कस्स देबिंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो महाराय सोम लोकपाल नों, संझप्रभ रे महाविमाण ।। संझप्पभे नामं महाविमाणे पण्णत्ते२१. साढा बार लाख जोजन तणो, लांबो पहुलो जेह । २१. अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, त्रिगुणी जाझी परिधि अछ, तिणरो विवरो रे आगल लेह ।। २२. गुणचालीस लक्ष योजन बलि, बावन सहस्र पिछाण । २२. उयालीसं जोयणसयसहस्साइं बावन्नं च सहस्साइं अट्ठ आठ सौ अडतालीस ऊपरै, किंचत् जाझी रे परिधि प्रमाण ।। य अडयाले जोयणसए किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। २३. जिका सर्याभ विमाण नी, वक्तव्यता कही पेख। २३. जा सूरियाभविमाणस्स वत्तव्वया सा अपरिसेसा भाणितिका सर्व भणवी इहां, जावत रे सभा अभिषेक ।। यव्वा जाव अभिसेओ, २४. णवरं इतो विशेष छ, सोम देव कहिवाय। २४. नवरं-सोमो देवो। (श० ३।२५०) हिवै सोम लोकपाल नी, रजधानी रे तिरछा लोक मांय ।। २५. संझप्रभ महाविमान नै, नीचे तिर्यग् लोक मांहि । २५. संझप्पभस्स णं महाविमाणस्स अहे, सपक्खिं, सपडिदिसि सपविख सपडिदिसिं, 'असंख-लक्ष रे योजन अवगाहि ।। असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, २६. इहां शक देवेंद्र नां, देवराजा ना ताम । २६. एत्थ णं सक्कस्स देविदस्स देवरणो सोमस्स महारणो सोम महाराजा तणी, रजधानी रे सोमा नाम ।। सोमा नाम रायहाणी पण्णत्ता-- २७. एक लक्ष जोजन तणी, लांबी पहली जाण । २७. एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं जंबुद्दीवण जंबूद्वीप प्रमाण छै, वैमानिक सूं रे अद्धं प्रमाण ।। माणा । बेमाणियाणं पमाणस्स अद्धं नेयवं २८. वैमानिक सुधर्म विमान न, प्रासाद गढ द्वारादि। २८. वैमानिकानां सौधर्मविमानसत्कप्रासादप्राकारद्वारादीनां जसुं प्रमाण का तेहथी, इण नगरी नों रे अधं ससाधि ।। प्रमाणस्येह नगर्यामर्द्ध ज्ञातव्यं। (वृ०-५० १६६) यतनी २६. सुधर्म विमान प्राकार, ऊंचो तीनसौ जोजन सार। ते माटै एहन अवलोय, ऊंचो दोढसौ जोजन जोय ।। १. यहां अगसुत्ताणी भाग २ श० ३।२५१ में 'जोयणसहस्साई' पाठ है। उसके पाठान्तर में 'जोयण सयसहस्साई' पाठ लिया गया है। जयाचार्य को प्राप्त आदर्श में यही पाठ रहा होगा, इसीलिए उन्होंने लाख योजन का उल्लेख किया है। ३९६ भगवती-जोड़ For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy