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६०. वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए
६०. वीर्य लब्धि करि वैक्रिय लद्धी, अवधि ज्ञान लब्धि करि सिद्धी।
लब्धि फोडी नै मुनिवर जेह, वैक्रिय-समुद्घात करि तेह ।। ६१. नगर राजगह विकुर्वेह, तेण रूप विकुर्वि जेह।
वाणारसी नगरी नां रूप, जाण देखै अधिक अनप? ६२. हंता गोयम ! जाण देखें, तथाभाव प्रति स्यं प्रभ पेखै।
अन्यथाभाव प्रत अवलोय, जाण देखे छै ते सोय ?
जिन कहै तथाभाव प्रति जेह, वस्तु जाणं देखें तेह।
अन्यथाभाव ते विपरीत त्यांही, ते प्रति जाणे देखै नांही। १४. किण अर्थे प्रभ! भाख्यो एह? तथाभाव प्रति ते जाणह।
अन्यथाभावे जाण नाही, हिव जिन उत्तर भाखै त्यांही ।। ६५. ते मुनिवर नै एहवू होय, म्हैं राजगृह विकुर्यो जोय।
एण रूप वाणारसी केरा, रूप जाणूं देखू छू घणरा।।
६१. रायगिह नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नय
रीए रूबाइं जाणइ-पासइ? ६२.हंता जाणइ-पासइ।
(श०३।२३१) से भंते ! कि तहाभावं जाणइ-पासइ ? अण्णहाभावं
जाणइ-पासइ? ६३. गोयमा ! तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं जाणइ-पासइ।
(श० ३।२३२) ६४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तहाभावं जाणइ.
पासइ, नो अण्णहाभावं जाणइ-पासइ? ६५. गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे
नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाई
जाणामि-पासामि। ६६. सेस सण-अविच्चासे भवति ।
६६. दर्शण विर्षे ते नहीं विपरीत, जिम छै तिम देखें सुवदीत।
जथातथ्य पिण तिमहिज भाखै, तिण कारण ते सम अभिलाखे ।। ६७. तिण अर्थे इम कह्यो वदीत, तथाभाव देखै समरीत।
विण नहि छै तेहने अन्यभावो, ए मुनिवर नों प्रथम आलावो ।। ६८. बीजो आलावो पिण इमहीज, णवरं वाणारसी विकूर्वीज। __ एण रूप विकुवि विशेखै, रूप राजगृह नां जाण देखें।
६६. हिव तीजो आलावो कहिय, मायी समदृष्टी इम लहिये।
बीरिय-लब्धी वैक्रिय - लद्धी, अवधिज्ञान लब्धि करि सिद्धी। ७०. नगर राजगह प्रति अवलोय, तथा बाणारसी नगरी जोय।
तथा बिहं नै विचाल विशेप, विकूव इक महाजनपद देश।। ७१. नगर राजगृह प्रतं ते सोय, बाणारसी प्रत
ने
अवलोय।
अवलोया तथा विहं विच जनपद देश, त्रिहं जाण देखै ? पूछेस ।। ७२. हंता गोयम ! जाण देखे, तथाभाव प्रति स्यं प्रभ ! पेच?
अन्यथाभाव प्रत पहिछाणी, जाणं देखै ते वर नाणी?
६७. से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-तहाभाव जाणइ
पासइ, नो अण्णहाभाव जाणइ-पासइ। ६८. बितिओ वि आलावगो एवं चेव नवरं वाणा रसीए समोहणा णेयब्धा । रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ-पासइ।
(श० ३।२३३-२३६) ६६. अणगारेणं भंते ! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरि
यलद्धीए वे उब्धियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए ७० रायगिह नगर, वाणारसिं च नगरि, अंतरा एग महं
जणवयग्गं समोहए, ७१. समोहणित्ता रायगिहं नगरं, वाणारसि च नरि, अंतरा
एगं महं जणवयग्गं जाणइ-पासइ? ७२. हंता जाणइ-पासइ?
(श०३१२३७) से भंते ! कि तहाभाव जाणइ-पासइ? अण्णहाभावं
जाणइ-पासइ? ७३. गोयमा ! तहाभावं जाण इ-पासइ, नो अण्णहाभावं जाणइ-पासइ।
(श० ३।२३८) ७४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तहाभावं जाणइ
पासइ? णो अण्णहाभाव जाणइ-पासइ? ७५. गोयमा ! तस्स णं एवं भवति–नो खलु एस रायगिहे
नगरे, नो खलु एस वाणारसी नगरी, नो खलु एस
अंतरा एगे जणवयग्गे, ७६. एस खलु ममं वीरियलद्धी वेउब्बियलद्धी ओहिनाणलद्धी
इड्ढी
७३. जिन कहै तथाभाव प्रति जेह, वस्तू जाण देखै तेह।
अन्यथाभाव न जाणे न देखे, अवधिज्ञानी ए मनि तिण लेखे ।। ७४. किण अर्थे प्रभु ! कह्यो विशैखै, तथाभाव प्रति जाण देखें।
अन्यथाभाव न जाणे न पेखै ? हिव जिन उत्तर दिये अशेषे ।। ७५. ते मुनिवर नै इम मानेह, नगर राजगह नहि छै एह।
वाणारसी नगरी नहि एस, नहि बिच इक महाजनपद देश।। ७६. ए वीरिय - लब्धी छै म्हारी, बलि मुझ वैक्रिय-लब्धि उदारी। ___ अवधि-ज्ञान नी पिण मुझ लद्धी, ए सगली छे म्हारी ऋद्धी।
श० ३, उ०६, ढा०६८ ३६३
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