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________________ २५. प्रभु ! श्रमण निर्णय ने सोय, किम क्रिया-कर्म-बंध होय । हे मंडिपुत्र ! जिन कहै प्रमाद जोग निमित्त सूं ॥ एम, पांचू क्रिया आश्री मंडिय पूछ्यूँ जान, साधु ने किम लागे तेम । २६. इहां धर्मसी कह्यो आछे लाल, २७. ए प क्रिया अशुभ सेव आछे लाल, जिन कह्यो प्रमादे २८. जोग निमित्त असुभ जोग जाण, प्रमाद नों संघात आछे लाल, तिण संजोग ते २९. प्रमाद नैं अशुभ जोग जोय, बोल आछे लाल, तिण में आज्ञा ३०. मुनि रे अशुभ जोग री जोय, आलोवणा आछे लाल, पिण अव्रत नहीं साधु ३१. इम साधु रे किया होय, अंक तेतीस नो देश तेसठमी नीके लाल, ढाल ३२. भिक्खु भारीमाल हे प्यारे लाल, १. ४. ५. ऋपराव तास 'जय जय' सुख इहां ए नहीं केवली पसाय संपति *लय - वाल्हा वारी रे अब लग ३६४ भगवती जोड़ Jain Education International इसूं ।। भगवान ? करी ॥ ढाल : ६४ हा 1 क्रिया तणां अधिकार थी, क्रिया प्रश्न हिव जोय । जीवे गं भंते! कयो, एक वचन अवलोय || वतें जे आरंभ में विये प्रश्न तास पहिछाण मंडियपुत्र पूछयो मुनि, उत्तर पिण तसुं जाण ।। • गुणमेहामुनि जन परम नाम खप कीजिये ३. प्रभु ! जीव प्रमाण सहित सदा कंपतो, बलि विविध प्रकार कंपायो जी एक स्थानक थी अन्य स्थानके, जावै तेह चलित कहिवायो जी || (ध्रुपदं ) उदीरति ते अन्य पदारथ, प्रेरे तास अथवा अन्य पदार्थ प्रसे जे अंगीकार करे पिछान | धरी ॥ दोय | तणी ॥ । फंदति ते किचित् चले, घटति स दिशि में चलायो । अथवा अन्य पदार्थ फॉ, खुमइ पे पृथ्वी मांह्यो । अवलोय । भणी ॥ जोय ए कही ।। सवाय । लही ॥ विशेयो। पेखो ॥ २५. कण्णं भंते ! समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ ? मंडिअपुत्ता ! पमायपच्चया, जोगनिमित्तं च । ३१. एवं खलु समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ । १. क्रियाधिकारादिदमाह For Private & Personal Use Only (१० ३१९४२) ( वृ० प० १८२ ) ३. जीवे णं भंते! सया समितं एयति वेयति चलति 'समियं' ति सप्रमाणं 'एयइ' त्ति एजते-कम्पते 'वेयइ' त्ति 'व्येजते विविधं कम्पते 'चलई' त्ति स्थानान्तरं गच्छति । ( वृ० प० १८३) ४. फंदइ घट्टइ खुम्भइ 'फंद' त्ति स्पन्दते किञ्चिच्चलति 'घट्टइ' त्ति सर्वदिक्षु चलति पदार्थान्तरं वा स्पृशति 'खुब्भइ' त्तिक्षुभ्यति पृथिवीं प्रविशति । ( वृ०१० १०३) ५. उदीरह 'उदीरह' त्ति प्राबल्येन प्रेरयति पदार्थान्तरं प्रतिपादयति ( वृ० प० १८३) था। www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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