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६६. जंबुद्वीपादि द्वीप असंख", लवणादि समुद्र अवंक" ।
सौधर्मादि कल्प बार", त्रिण ग्रैवेयक त्रिक धार ।। ६७. पंच अनुत्तर जेह", सिद्धसिला एकावन" एह।
ए धर्मास्तिकाय नो ताय, असंख्यातमो भाग फर्शाय ।। १८. सातं नरक ना अंतर सात, बारै कल्पना आठ विख्यात"।
ए पनरै अंतर सुचीन, विण त्रिक ना अंतर तीन" ।। EE. वेयक थी पंच अनुत्तर, विचलो एक आकाशांतर ।
ए धर्मास्तिकाय नं ताय, संख्यातमु भाग फर्शाय ।। १००. अनुत्तर सिद्धसिला विचाल, द्वादश योजन अंतरालै। ते धर्मास्तिकाय न ताय, असंख्यातम भाग फर्शाय' ।
(ज० स०) १०१. बीजा शतक नो दशमों उद्देश, छयालीसमी ढाल अशेष।
भिवखु भारीमाल ऋषिराय, 'जय-जश' संपति सुख पाय ।।
गीतक छंद श्री पंचमांग विष रह्या बहु शतक सरस सुहामणा।
महासूत्र पिड अछै जिहां ते अधिक ही रलियामणा ।। २. सद्गुरु प्रसाद सूत्रार्थ ज्ञाता वचन अनुसारे करी। ___ शत द्वितीय अर्थ विचारियो म्है जोड़ रूपज चित धरी ।।
द्वितीयशते दशमोद्देशकार्थः ।।२।१०।।
१, २. श्रीपञ्चमाङ्गे गुरुसूत्रपिण्डे,
शतं स्थितानेकशते द्वितीयम् । अनैपुणेनापि मया व्यचारि, सूत्रप्रयोगज्ञवचोऽनुवृत्त्या ॥ (वृ०-प० १५२)
३१२ भगवती-जोड़
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