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अन्य सिद्धान्त तथा वलि, न्याय मेल्या इण ठाम । aft केइक निज बुद्धि थकी, अर्थ कह्या अभिराम ॥ अर्थ कियो फुन शब्द नों, ते पिण मिलतो जाण । विस्तारयो किहां अल्प नों, किहां संकोची वाण ॥ किहां वैराग्य वधायवा, उपदेश्यो अधिकाय । किहांइक चोज लगाय नै व्याख्यानादि कहाय ॥ किहां कह्यो तुक मेलवा, किहां अनुमाने लेह | किहां बहु वच त्यां इक वचन संग्रहवा शब्देह || faaisa भांगा बुद्धि थकी केइक यंत्र बणाय । सूत्र तणो अनुसार ले, आख्या अधिकाय ॥ गमा णाणत्ता संजया, बलि नियंठा न्हाल | सूक्ष्म चरचा में बलि, मेल्या न्याय विशाल || इत्यादिक इण जोड़ में दाख्यो मिलतो जाण । अणमिलतो जु आयो हुवै, ज्ञानी व ते प्रमाण || वलि कोइक पंडित प्रबल है, आगम देख उदार । जे विरुद्ध वचन है सूत्र थी, ते काढ़े दीजो बार ॥ विण उपयोगे विरुद्ध वचन, जे आयो हुवै अजाण । अहो त्रिलोकीनाथजी, तसु म्हारे नहीं ताण ॥ म्हैं तो म्हारी बुद्धि थकी, आख्यो छे सुद्ध जाण । श्रद्धा न्याय सिद्धांत ना दाख्या शुद्ध पिछाण ॥ पिण छद्मस्थ पणा थकी, कहिये वारंवार । प्रभु सिकार अर्थ प्रति तेहिज छँ तंतसार || अणमिलतो जु आयो हुवै, मिश्र आयो कोय । संका सहित आयो हुवै, तो मिच्छामी दुक्कडं मोय ||
जयाचार्य ने अपने पूर्वज आचार्यों के प्रति स्थान-स्थान पर श्रद्धा प्रदर्शित की है । गीतिकाओं के अंत में “भिक्खु भारीमाल ऋषिराय प्रसाद, जय-जश संपति सारो ।” यह उनका स्थायी स्वर है । सत्य की विनम्र साधना और श्रद्धा से परिपूर्ण प्रस्तुत कृति ज्ञान और भाव की आराधना की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण उपहार है ।
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आचार्य तुलसी युवाचार्य महायज्ञ
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