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१२. हे प्रभुजी ! पहिला ए अंड छ, पछै कुक्कुडी जेह ।
के प्रथम कुक्कुडी पाछै अंड छ, हिव जिन उत्तर देह ।। १३. रोहा ! ते अंड किण सूं ऊपनों ? कुक्कुडी सूं भगवंत !
तिका कुक्कुडी किण सूं ऊपनी?, अंड थकी हे भदंत ! १४. इमहिज रोहा ! ते अंड कुक्कुडी, पहिला पछै पिण एह ।
ए दोनूई शाश्वत भाव छ, अनानुपूर्वी कहेह ।।
१५. पहिला हे प्रभुजी ! लोकांत छ, पछै अलोकांत थाय?
पहिला अलोकांत पछ लोकांत छ? रोहा ! जाव आनुपूर्वी नांय ।।
१६. पहिला हे प्रभजी ! लोकांत छै, पछै सप्तम आकाश।
सप्तमी नरक हेठे आकाश छै ? ए पूछा सुविमास ।। जिन कहै रोहा ! लोक नों अंत ते, सप्तम पृथ्वी आकाश ।
पूर्व पछै पिण ए भाव शाश्वता, जाव अनानुपूर्वी तास ।। १८. इम लोकांत सप्तम तणुवाय ते, इम लोकांत घनवाय ।
इम लोकांत सप्तम धनोदधि, सप्तम पृथ्वी कहाय ।। १६. इम लोकांत संघाते जोडवो, तम'-पृथ्वी-तल आकाश।
तणुवाय घनवाय तम नों घनोदधि, इम तम पृथ्वी विमास ।। २०. एम पंचमी जावत् धुर तणो, आकाश नैं तणुवाय ।
घनवाय घनोदधि नै बलि पृथ्वी, लोकांत साथ जुडाय ।। बलि लोकांत संघाते जोडवा, द्वीप समुद्र असंख्यात । वासा-भरतक्षेत्रादिक सात छ, दंडक चउवीस ख्यात ।। अस्तिकाय पंच बलि समय नै, कर्म अष्ट पट लेस ।
दृष्टि तीन बलि दर्शण च्यार नै, ज्ञान पंच सुविशेष ।। २३. चिहं संज्ञा बलि पंच शरीर नै, बलि त्रिण जोग विख्यात ।
प्रवर दोय उपयोग प्रतै वली, जोडवा लोकांत साथ ।। द्रव्य प्रदेश अनै पज्जवा वली, ए विहं पद नों जेह।
अर्थ धमसीह कीधो छ तिको, सांभलजो चित देह ।। २५. जीव अजीव बिहं ए द्रव्य कह्या, प्रदेश बिहं नां जाण ।
पज्जवा जीव अजीव तणां बली, अर्थ कियो इम छाण ।। २६. वृत्तिकार कह्यो द्रव्य ते षट् अछ, कह्या प्रदेश अनंत ।
पज्जव अनंता ए अर्थ वृत्ति में, अद्धा काल विहं हंत ।।
१२-१४. पुब्वि भंते ! अंडए, पच्छा कुक्कुडी ? पुब्वि कुक्कुडी,
पच्छा अंडए? रोहा ! से णं अंडए कओ? भयवं ! कुक्कुडीओ। सा णं कुक्कुडी कओ? भते ! अंडयाओ। __एवामेव रोहा ! से य अंडए, सा य कुक्कुडी पुब्बि पेते, पच्छा पेते-दो वेते सासया भावा अणाणुपुव्वी एसा रोहा !
(श० १०२६५) १५. पुब्वि भंते ! लोयंते, पच्छा अलोयते? पुब्धि अलोयंते,
पच्छा लोयते ? रोहा! लोयते य अलोयते य जाव
अणाणुपुब्वी एसा रोहा! (श० ११२९६) १६. पुचि भंते ! लोयंते, पच्छा सत्तमे ओवासंतरे? पुब्धि
सत्तमे ओवासंतरे, पच्छा लोयंते ? १७. रोहा ! लोयंते य सत्तमे ओवासंतरे य पुब्बि पेते, जाव
अणाणुपुब्बी एसा रोहा? (श० ११२६७) १८-२४. एवं लोयंते य सत्तमे य तणुवाए। एवं घणवाए,
घणोदही, सत्तमा पुढवी। एवं लोयंते एक्केकेणं संजोएतब्वे इमेहि ठाणेहि, तं जहा--
ओवास-बात-घणउदहि-पुढवि-दीवा य सागरा वासा। नेरइयादि अत्थिय, समया कम्माइ लेस्साओ॥१॥ दिट्ठी दंसण-नाणे, सण्ण-सरीरा य जोगे-उबओगे। दब्ब-पएसा-पज्जव, अद्धा कि पुचि लोयंते॥२॥
(श० १।२६८ संगहणी-गाहा)
२२.
२४.
२६. द्रव्याणि पट् प्रदेशा अनन्ता: पर्यवा अनन्ता एवं 'अद्ध' त्ति अतीताद्धा अनागताद्धा सर्वाद्धा चेति।
(वृ०-५० ८१, ८२)
२७. ए सह लोकांत साथै जोडवा, पहिला लोकांत एह।
पाछै ए सहु पूछा जूजइ, उत्तर पूर्ववत् जेह ।।
१. छठी तमा पृथ्वी।
१४६ भगवती-जोड़
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